डोनाल्ड ट्रंप ने 180 से ज्यादा देशों पर रियायती रेसिप्रोकल टैरिफ लगा दिए हैं, जिससे वैश्विक बाजारों में हाहाकार मच गया है. अमेरिका, एशिया और यूरोप में भारी गिरावट देखी जा रही है.
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शेयर बाजारों में ऐतिहासिक गिरावट
टैरिफ के ऐलान के बाद दुनियाभर के शेयर बाजार धड़ाम हो गए. निवेशकों में डर का माहौल बन गया है और आर्थिक मंदी की आहट सुनाई देने लगी है.
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याद आया 1929 का 'ब्लैक ट्यूसडे'
29 अक्टूबर 1929, जब न्यूयॉर्क स्टॉक एक्सचेंज ध्वस्त हो गया और इसके साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था डूब गई. एक ही दिन में 11.73% की गिरावट से लाखों डॉलर स्वाहा हो गए थे.
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डूब गए बैंक और बचतें
महामंदी के दौरान करीब 11,000 अमेरिकी बैंक बंद हो गए. लोगों की जीवनभर की जमा पूंजी पानी में चली गई और बाजार पर से भरोसा उठ गया.
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रोजगार गया, लोग हुए बेघर
शेयर बाजार के साथ ही उद्योग-धंधे भी ठप हो गए. बेरोजगारी दर चरम पर पहुंची और लोग सड़कों पर आ गए. मुफ्त खाने के लिए कतारें लगने लगीं.
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रूजवेल्ट का न्यू डील मॉडल
महामंदी से निपटने के लिए राष्ट्रपति रूजवेल्ट ने 'न्यू डील' के तहत कई योजनाएं शुरू कीं – CWA, SEC, TERA जैसी योजनाओं ने अर्थव्यवस्था को धीरे-धीरे संभाला.
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पर्ल हार्बर और अमेरिका की वापसी
दूसरे विश्व युद्ध में अमेरिका की एंट्री से उद्योगों को नया जीवन मिला और रोजगार के अवसर बढ़े. अमेरिका फिर से वैश्विक आर्थिक शक्ति बन गया.
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1929 के बाद आई प्रमुख आर्थिक मंदियां
1973 का तेल संकट, 2002 की डॉट-कॉम क्रैश, 2008 का हाउसिंग संकट और 2020 की कोरोना मंदी ने दुनिया को झकझोरा, लेकिन 1929 की महामंदी सबसे भयावह रही.
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आज भी सता रहा वैसा ही डर
ट्रंप के टैरिफ और वैश्विक बाजारों की हालत देखकर विशेषज्ञों को फिर उसी 'ब्लैक ट्यूसडे' का डर सता रहा है.
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इतिहास से सबक
इतिहास यही सिखाता है कि जब बाजार लालच और लापरवाही से भर जाते हैं, तब कोई एक घटना उसे तबाह करने के लिए काफी होती है.