1320 के आसपास रिंचन शाह ने कश्मीर की सत्ता संभाली और इस्लाम धर्म अपना लिया. शाह मीर के शासन के साथ मुस्लिम वंश का उदय हुआ, जिसने घाटी का इतिहास बदल दिया.
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शेख अब्दुल्ला और लोकतंत्र की पहली किरण
शेख अब्दुल्ला ने लोकतांत्रिक मूल्यों की नींव रखी. श्रीनगर के इकबाल पार्क में अपने बेटे फारूक को नेशनल कॉन्फ्रेंस का नेता बनाकर नई सियासी विरासत शुरू की.
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अकबर जहां की रहस्यमयी कहानियां
शेख अब्दुल्ला की पत्नी, अकबर जहां को लेकर कई कथाएं हैं. जिनमें ब्रिटिश जासूस लॉरेंस से कथित विवाह की अफवाहें भी शामिल हैं.
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फारूक अब्दुल्ला की सत्ता में वापसी और उथल-पुथल
1982 में शेख की मृत्यु के बाद फारूक मुख्यमंत्री बने. 1983 के चुनावों में भारी जीत के बावजूद, इंदिरा गांधी से टकराव घाटी की स्थिरता को हिला गया.
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1987 के चुनाव और लोकतंत्र की हार
1987 में कांग्रेस-एनसी गठबंधन ने चुनावी धांधली से जीत हासिल की. मुस्लिम यूनाइटेड फ्रंट के साथ हुए अन्याय ने कश्मीर के युवाओं को लोकतांत्रिक रास्ते से विमुख कर दिया.
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यूसुफ शाह से सैयद सलाहुद्दीन तक का सफर
अमीरा कदल के उम्मीदवार यूसुफ शाह चुनाव हारने के बाद पाकिस्तान चले गए. वहाँ उन्होंने हिजबुल मुजाहिदीन का नेतृत्व किया और 'सैयद सलाहुद्दीन' के नाम से आतंकवाद का चेहरा बने.
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पाकिस्तान की भूमिका
जनरल जिया ने कश्मीर में 'निजाम-ए-मुस्तफा' की नीति को बढ़ावा दिया. आईएसआई ने घाटी में उग्रवाद को हवा देने के लिए पूरी ताकत झोंक दी.
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1989 - पर्यटन से आतंकवाद तक का सफर
1989 तक कश्मीर में रेकॉर्ड पर्यटक आ रहे थे. लेकिन वहीं, अल-बरक, अल-फतेह, अल-जेहाद जैसे संगठनों ने बंदूक की राजनीति शुरू कर दी थी.
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यूसुफ वानी की हत्या
15 अगस्त 1989 को, जब पूरा भारत आज़ादी मना रहा था, श्रीनगर के हलवाई यूसुफ वानी को दुकान की रोशनी जलाए रखने की सजा गोली मारकर दी गई, संदेश साफ था- भारत समर्थक नहीं चलेगा.
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1990 के दशक की दहशत की शुरुआत
यूसुफ वानी की हत्या ने घाटी में आतंकवाद की खुली शुरुआत कर दी. लोकतंत्र की जगह अब बंदूक और खून का बोलबाला होने लगा.