डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 1888 में तिरुत्तानी (तमिलनाडु) में एक साधारण ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने छोटी उम्र से ही पढ़ाई में अपनी प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी थी.
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भारतीय दर्शन के विशेषज्ञ
वे वेदांत दर्शन से गहराई से प्रभावित थे और उन्होंने भारतीय दर्शन को दुनिया के सामने वैज्ञानिक और तार्किक रूप में पेश किया.
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भारत की आवाज
डॉ. राधाकृष्णन ने ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पूर्वी धर्म और नैतिकता के प्रोफेसर के रूप में पढ़ाया. यह उस समय की बात है जब भारतीयों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कम सुना जाता था.
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विश्वविद्यालयों के कुलपति
उन्होंने मद्रास प्रेसिडेंसी कॉलेज, मैसूर यूनिवर्सिटी, आंध्र यूनिवर्सिटी और बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) में शिक्षा दी. BHU और आंध्र विश्वविद्यालय के कुलपति भी बने.
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भारत के पहले उपराष्ट्रपति बने
स्वतंत्र भारत में वे 1952 में पहले उपराष्ट्रपति बने और इस पद पर 10 साल तक रहे.
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दूसरे राष्ट्रपति
1962 से 1967 तक उन्होंने भारत के राष्ट्रपति पद की गरिमा को अपने ज्ञान और विनम्रता से और ऊंचा किया.
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शिक्षक दिवस
जब उनके छात्र और प्रशंसक उनका जन्मदिन (5 सितंबर) मनाना चाहते थे, तो उन्होंने विनम्रता से कहा – 'मेरे जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए.' हर साल 5 सितंबर के दिन भारत में टीचर्स जे मनाया जाता है.
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किताबें
उन्होंने The Hindu View of Life, Indian Philosophy, और The Philosophy of Rabindranath Tagore जैसी फेमस किताबें लिखीं जो आज भी विश्वभर की यूनिवर्सिटीज में पढ़ाई जाती हैं.
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राष्ट्र निर्माण का आधार
उनका मानना था कि एक अच्छा शिक्षक, समाज और राष्ट्र की नींव को मजबूत करता है. उन्होंने पूरी जिंदगी ज्ञान को बांटने और समझ को बढ़ाने में बिताई.