उत्तराखंड में इसे हिंदू नववर्ष की शुरुआत माना जाता है. यह समय प्रकृति के नवीकरण और नए जीवन का उत्सव है.
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शिव मंदिरों में पूजा
इस दिन लोग गंगा और दूसरी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, दान-पुण्य करते हैं और शिव मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं.
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गंगा स्नान से शुरू बैसाखी का पर्व
शिव पुराण के अनुसार, जब देवता और असुर समुद्र मंथन कर रहे थे, तब हलाहल नामक विष निकला, जो सृष्टि को नष्ट करने में सक्षम था.
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भगवान शिव
भगवान शिव ने मानवता की रक्षा के लिए इस विष को अपने कंठ में धारण किया, जिससे उनका शरीर अत्यधिक गर्म हो गया. देवताओं ने गंगा जल, दूध और बेलपत्र चढ़ाकर उन्हें शीतल किया.
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शिव का बलिदान
उत्तराखंड के प्रसिद्ध शिव मंदिर जैसे केदारनाथ, तुंगनाथ, बैजनाथ और हरिद्वार के दक्षेश्वर महादेव मंदिर में बैसाखी पर भक्तों की भीड़ उमड़ती है.
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शिवलिंग
भक्त सुबह-सुबह गंगा जल से स्नान कर शिवलिंग पर जल, दूध, दही, शहद और बेलपत्र चढ़ाते हैं.
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शिव भक्ति में डूबा उत्तराखंड
शिवलिंग पर जल चढ़ाने से भक्तों का मन नकारात्मक विचारों से मुक्त होता है.
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जल से शुद्धि
जल चढ़ाने की प्रथा का वैज्ञानिक आधार भी है. शिवलिंग पर जल डालने से पत्थर का तापमान नियंत्रित रहता है, जिससे मंदिर का वातावरण शीतल और शुद्ध होता है.
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जल चढ़ाने की प्रथा
बैसाखी पर जल चढ़ाने की प्रथा प्रकृति के प्रति सम्मान को भी दर्शाती है. बैसाखी के अवसर पर कई मंदिरों में वृक्षारोपण जैसे कार्य भी किए जाते हैं.