जीवन में ऐसी घटनाएं घटित होती हैं, जो मानवता, प्रेम और श्रद्धा की मिसाल बन जाती हैं. एक ऐसी ही प्रेरणादायक घटना सामने आई है, जो हर किसी को सोचने पर मजबूर करती है कि सच्ची श्रद्धा और कर्तव्य का क्या मतलब होता है. यह घटना जुड़ी है सुदेश पाल मलिक, एक किसान, और उनकी 95 वर्षीय मां जगबीरी देवी से. सुदेश पाल ने अपने जीवन में एक अनोखा कदम उठाया, जो शायद हम में से अधिकांश के लिए आदर्श बन सकता है.
सुदेश पाल मलिक ने अपनी मां के साथ महाकुंभ की यात्रा पर निकलने का निर्णय लिया. खास बात यह है कि सुदेश पाल के घुटने खराब हो गए थे, लेकिन अपनी मां की दुआओं के कारण वह फिर से चलने में सक्षम हो गए. सुदेश ने यह कहा कि, "मां की दुआओं ने मुझे फिर से चलने लायक बनाया, और अब मैं उन्हें महाकुंभ के पवित्र अवसर पर लेकर जा रहा हूं."
जय हो कलयुग के श्रवण कुमार की..
— Kuldeep Panwar (@Sports_Kuldeep) January 28, 2025
95 साल की मां को महाकुंभ स्नान करना था.. मुजफ्फरनगर के खतौली ब्लॉक के 65 वर्षीय सुदेश पाल मां को बग्गी में बैठाकर चल दिए हैं करीब 700 किमी दूर #प्रयागराज #MahaKumbhMela2025 #महाकुंभ_2025_प्रयागराज #mahakumbh2025prayagraj
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सुदेश ने अपनी मां को बुग्गी में बैठाकर खुद ही उसे खींचते हुए प्रयागराज की ओर रवाना हुआ. उनका यह कार्य न केवल बेटे और मां के रिश्ते को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि श्रद्धा और परिवार के प्रति कर्तव्य का कोई विकल्प नहीं होता. सुदेश की इस यात्रा में एक गहरी संदेश है, जिसमें उन्होंने अपने दिल की आवाज सुनी और अपनी मां की सेवा करने का फैसला किया.
यह दृश्य शायर मुनव्वर राना के प्रसिद्ध शेर "अभी जिंदा है मां मेरी, मुझे कुछ भी नहीं होगा, मैं घर से जब निकलता हूं दुआ भी साथ चलती है..." की सटीक व्याख्या करता है. सुदेश के लिए उसकी मां की दुआ और आशीर्वाद सबसे बड़ी ताकत थी, जो उसे न केवल घुटनों की बीमारी से उबारने में सहायक बनी, बल्कि महाकुंभ जैसे धार्मिक आयोजन में भाग लेने के लिए प्रेरित भी किया.
सुदेश के इस कदम से यह साबित होता है कि श्रद्धा, कर्तव्य और परिवार का रिश्ता हर स्थिति में सबसे ऊपर होता है. यह केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि एक गहरी भावनात्मक यात्रा है, जो मां-बेटे के संबंधों की पवित्रता को उजागर करती है.