IIT Madras director video praising cow urine goes viral: IIT मद्रास के डायरेक्टर वी. कमकोटी का एक वीडियो हाल ही में सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है, जिसमें उन्होंने ‘गोमूत्र’ के औषधीय गुणों की सराहना की है. इस वीडियो में कमकोटी ने गोमूत्र को बैक्टीरिया विरोधी, फंगल विरोधी और पाचन संबंधी गुणों से भरपूर बताया है. उनका यह बयान विभिन्न प्रकार के रोगों, जैसे इरिटेबल बाउल सिंड्रोम (IBS) का इलाज करने में गोमूत्र की भूमिका को लेकर था.
वीडियो में, कमकोटी ने एक साधू की कहानी सुनाई, जो उच्च बुखार से पीड़ित था और उसने गोमूत्र का सेवन किया था, जिसके बाद उसकी तबियत में सुधार हुआ. यह बयान उन्होंने माटू पोंगल के अवसर पर एक गोसंरक्षण सभा में दिया था, जो 15 जनवरी को आयोजित हुई थी.
कमकोटी के अनुसार, गोमूत्र के उपयोग से न केवल पाचन तंत्र को लाभ होता है, बल्कि यह बैक्टीरिया और फंगस को भी नष्ट करने में मदद करता है. उन्होंने इसे प्राकृतिक चिकित्सा के रूप में प्रस्तुत करते हुए इसके संभावित औषधीय लाभों पर जोर दिया.
कमकोटी के इस बयान के बाद सोशल मीडिया पर तीव्र प्रतिक्रियाएं आईं. कांग्रेस नेता कार्ति पी. चिदंबरम ने इसे ‘पस्यूडोसाइंस’ (अविज्ञान) करार दिया और कहा कि IIT मद्रास के निदेशक का इस प्रकार का बयान अनुचित है. इसी तरह, अन्य राजनीतिक और सामाजिक समूहों ने भी इस टिप्पणी पर आलोचना की.
Peddling pseudoscience by @iitmadras Director is most unbecoming @IMAIndiaOrg https://t.co/ukB0jwBh8G
— Karti P Chidambaram (@KartiPC) January 18, 2025
द्रविड़ कझागम, एक तर्कवादी संगठन ने इस टिप्पणी को "शर्मनाक" बताते हुए आरोप लगाया कि कमकोटी अज्ञेयवादी विचारों को बढ़ावा दे रहे हैं. तमिलनाडु की डीएमके पार्टी के नेता टीकेएस एलंगोवन ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार इस तरह की कथाओं का इस्तेमाल शिक्षा को नष्ट करने के लिए कर रही है.
हालांकि, कमकोटी के समर्थक इस टिप्पणी को एक व्यापक संदर्भ में देख रहे हैं. उनका कहना है कि वह एक जैविक किसान हैं और गोसंरक्षण से संबंधित किसी कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने यह बात की थी. उनके अनुसार, गोमूत्र के औषधीय गुणों का समर्थन करने के लिए वैज्ञानिक अध्ययन भी मौजूद हैं. एक अध्ययन, जो ‘नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था, में गाय के मूत्र में जैविक सक्रिय गुणों की जांच की गई थी.
कमकोटी, जो IIT मद्रास के निदेशक पद पर 2022 से कार्यरत हैं, एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हैं और DRDO अकादमी एक्सीलेंस अवार्ड (2013) के प्राप्तकर्ता भी हैं. उनका यह बयान शायद इस उद्देश्य के तहत था कि लोगों को गोवंश की नस्लों के संरक्षण के महत्व के बारे में जागरूक किया जा सके.
इस मामले ने समाज में विज्ञान, संस्कृति और पारंपरिक चिकित्सा के बीच के रिश्ते पर एक नया सवाल खड़ा किया है, जिसे व्यापक रूप से चर्चा में लाया जा रहा है.