IIM ग्रेजुएट ने मात्र 10 दिन के भीतर छोड़ दी 21 लाख के पैकेज की नौकरी, रेडिट पर पोस्ट कर खुद बताई वजह
यह घटना न केवल कॉर्पोरेट दुनिया की सच्चाई को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि ऊंची डिग्री और मोटा पैकेज हमेशा संतुष्टि की गारंटी नहीं होते. पारदर्शिता और उम्मीदों का मिलान न होने पर ऐसे फैसले सामने आते हैं.
एक आईआईएम ग्रेजुएट ने मात्र 10 दिन के भीतर 21 लाख रुपए पैकेज की नौकरी छोड़ दी. यही नहीं उसे 2 लाख रुपए का जॉइनिंग बोनस भी दिया गया था, इसके शानदार पैकेज के बावजूद उसने मात्र 10 दिन में नौकरी छोड़ दी. शख्स ने रेडिट पर अपनी नौकरी छोड़ने की वजह बताई है.
क्यों छोड़ी नौकरी?
शख्स ने बताया कि मुझे लगा कि मुझे मार्केटिंग डिवीजन में लिया गया है, लेकिन अब कह रहे हैं कि पहले एक साल तक सेल्स करनी होगी. क्या बकवास अकाउंट्स दिए हैं भाई मुझे. क्या ऐसा ही होता है मार्केट में?” इसके बाद उस ग्रेजुएट ने तुरंत कहा, “मैं ये बकवास वाला खेल नहीं खेलना चाहता.”
बाद में मिली 16 लाख की नौकरी
इसके बाद आईआईएम ग्रेजुएट ने 16 लाख रुपये सालाना पैकेज पर ऑपरेशंस और सप्लाई चेन की नौकरी जॉइन की जबकि उसके ऊपर लोन का भी बोझ था.
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ पोस्ट
यह पोस्ट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और कमेंट सेक्शन में लोगों की मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आईं. कुछ ने आईआईएम ग्रेजुएट को “अहंकारी” बताया, तो कुछ ने उसका बचाव करते हुए कहा कि रिक्रूटर्स को जॉब प्रोफाइल के बारे में पारदर्शी होना चाहिए. एक यूजर ने लिखा, “क्या उसे दोष दे सकते हैं? मैंने देखा है कि रिक्रूटर्स ‘मार्केटिंग’ के नाम पर सेल्स की नौकरी के लिए इंटरव्यू लेते हैं.” एक अन्य ने कहा, “ये लोग CAT देते हैं, दो साल तक अहंकारी लोगों के साथ रहते हैं, फिर अगर उन्हें ग्राउंड लेवल सेल्स करने को कहो तो उन्हें पसंद नहीं आता. वे डेस्क जॉब चाहते हैं. साथ ही, कंपनी का पहले से प्रोफाइल न बताना भी अजीब है.”
आईआईएम टैग से बढ़ जाता है अहंकार
एक तीसरे यूजर ने कहा, “आईआईएम का टैग लोगों में अहंकार को बढ़ा देता है. यह टैग आपको ऊंचा वेतन दिला सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हमेशा हाई-एंड काम ही मिलेगा. सभी आईआईएम एक जैसे नहीं होते; रोहतक और काशीपुर जैसे संस्थान A, B, C की तुलना में लगभग टियर-2 हैं.” एक अन्य ने लिखा, “शायद नए आईआईएम ग्रेजुएट्स को पहले साल सेल्स सिखाई जाती है ताकि वे इसकी कठिनाइयों को समझें और सेल्स टीम को कोसने की बजाय उनकी भावनाओं को समझें. फिर भी, मैं गलत हो सकता हूं.”
नौकरी की वास्तविकता
यह घटना न केवल कॉर्पोरेट दुनिया की सच्चाई को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि ऊंची डिग्री और मोटा पैकेज हमेशा संतुष्टि की गारंटी नहीं होते. पारदर्शिता और उम्मीदों का मिलान न होने पर ऐसे फैसले सामने आते हैं.