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India Daily

Video: आखिर राहत इंदौरी को क्यों झेलना पड़ा था बैन?

मुशायरों और कवि सम्मेलनों के मंच पर जमकर वाहवाही लूटने वाले राहत इंदौरी को दुनिया एक चर्चित और दमदार शायर के तौर पर जानती है. राहत इंदौरी ऐसे शायर थे जो जो हुकूमत की आंखों में आंखें डालकर बात करते थे, जो कहना था, वो सामने कहते थे और जो बात कह दी उससे कभी पीछे नहीं हटते थे. राहत इंदौरी को कई बार इसकी कीमत भी चुकानी पड़ी, लेकिन उन्होंने अपने उसूलों से कभी समझौता नहीं किया.
 
राहत इंदौरी अक्सर इशारों-इशारों में सरकार को भी आड़े हाथों ले लिया करते थे. उन्होंने कई बार सियासी शेर भी कहे हैं और आख़िर में उनकी छवि एक बाग़ी शायर जैसी भी बन गई थी. जो हुकूमत को अपने क़लम की धार से खुली चुनौती दिया करता था. राहत इंदौरी ने लिखा-
कौन ज़ालिम है यहाँ, ज़ुल्म हुआ है किस पर
क्या ख़बर आएगी अख़बार को तय करना है
अपने घर में मुझे क्या खाना, पकाना क्या है
ये भी मुझको नहीं, सरकार को तय करना है
साथ चलना है तो तलवार उठा मेरी तरह
मुझसे बुज़दिल की हिमायत नहीं होने वाली

राहत इंदौरी को एक बार अपनी इस बेबाक़ी की क़ीमत भी चुकानी पड़ी थी. दरअसल, उन्हें लाल क़िले में होने वाले सालाना मुशायरे में बैन कर दिया गया था. हुआ कुछ यूं था कि जब राहत इंदौरी ने लाल किले पर शेर पढ़ने शुरू किए तो बातों ही बातों में हुकूमत पर तंज़ कस दिए. ये बात एक बड़े लीडर को बुरी लग गई और अगले कई बरसों तक राहत इंदौरी को लाल किले के तारीख़ी मुशायरे में दावत नहीं दी गई. जबकि इससे पहले उन्हें हर बार बुलाया जाता था. हालांकि पाबंदी लगने से राहत इंदौरी पर ना तो कोई फर्क पड़ने वाला था और ना ही पड़ा.