सुल्तानपुर का 'गुड्डू' कैसे बना संजय सिंह? इंजीनियर से राज्यसभा तक ऐसा रहा है सफर
Sanjay Singh: कथित शराब घोटाले में करीब 6 महीने तक तिहाड़ जेल में बंद रहने के बाद संजय सिंह 3 अप्रैल को तिहाड़ जेल रिहा हुए. तिहाड़ जेल से बाहर निकलने के बाद सुल्तानपुर के गुड्डू का तेवर और तल्ख नजर आ रहा है. आइये जानते हैं इंजीनियर से राज्यसभा सांसद बनने का तक सफर.
Sanjay Singh: संजय सिंह आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है. संजय सिंह जहां आज आम आदमी पार्टी की रीढ़ हैं वहीं विपक्ष के एक तेज तर्रार नेता हैं. हाल ही में एक मीडिया हाउस के सर्वे से सामने आया था कि सदन में सांसदों की हाजिरी का राष्ट्रीय औसत 79 फीसदी है, लेकिन राज्यसभा में संजय सिंह की हाजिरी 86 फीसदी है. सदन में होने वाली बहस में हिस्सा लेने का राष्ट्रीय औसत 98 है, लेकिन संजय सिंह 218 बहस का हिस्सा बने हैं. सदन में सवाल पूछे जाने का राष्ट्रीय औसत 259 है, जबकि संजय सिंह राज्यसभा में 479 सवाल पूछ चुके हैं.
संजय सिंह के बारे में दो बातें कही जाती हैं, पहली ये कि वो हार नहीं मानते और दूसरी ये कि वो राजनीति में नहीं होते तो शायद गायक होते. अक्सर सफेद कुर्ते पायजामे में देखे जाने वाले 51 साल के संजय सिंह की जड़ें कहां से हैं और राजनीति का बड़ा नाम बनने से पहले वो क्या थे. उत्तर प्रदेश का सुल्तानपुर जिला देश की राजधानी दिल्ली से करीब 700 किमी दूर है. आम आदमी पार्टी के संजय सिंह इसी सुल्तानपुर से ताल्लुक रखते हैं. उनका जन्म इसी जिले में हुआ था. संजय सिंह की मां और पिता दोनों शिक्षक थे. वो राजपूत बिरादरी से आते हैं. सुल्तानपुर के लोगों के लिए संजय सिंह गुड्डू नाम से जाने जाते हैं. संजय के माता-पिता ने 12वीं की परीक्षा के बाद उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए ओडिशा भेज दिया था. ओडिशा से कोल माइनिंग की डिग्री लेने के बाद संजय सिंह वापस लौटे थे. धनबाद में नौकरी भी ज्वाइन कर ली थी लेकिन कुछ अलग करने की सोच रखने वाले संजय का मन रमा नहीं और वो घर लौट आए.
खुद को कई बार बोला फक्कड़!
इसके बाद संजय सिंह की समाज सेवा का सिलसिला शुरू हुआ. उन्होंने रेहड़ी लगाने वालों के लिए आवाज उठाई. समाज सेवा केंद्र भी बनाया और रक्तदान करने की मुहिम भी चलाई. सुल्तानपुर के रहने वाले लोगों का स्वभाव आंदोलनकारी होता है. उनकी प्रवृत्तियां फक्कड़ किस्म की होती हैं. संजय सिंह खुद भी बार-बार अपने लिए फक्कड़ शब्द का इस्तेमाल करते हैं. यूपी और पंजाब में उनकी खास भूमिका है. संजय लगातार केंद्र सरकार को निशाने पर लेते रहते हैं. भ्रष्टाचार और घोटाले का आरोप लगने के बाद भी उनके तेवर तीखे ही दिखे.
विपक्षी एकता के ब्रिज!
संजय लगातार विपक्ष को एकजुट करने का काम करते रहे हैं. वो आप और अन्य दलों के बीच समझौते भी करवाते रहे हैं. वो 8 जनवरी 2018 को राज्यसभा सांसद चुने गए थे. इसके बाद से ही सदन में उनका रिकॉर्ड काफी अच्छा रहा है. गुड्डू से संजय सिंह बनने तक का सफर तय कर चुके इस लीडर की पहचान एक साफ-सुथरी छवि वाले नेता के तौर पर होती है. मणिपुर मामले में संजय सिंह ने सभापति की कुर्सी के सामने पहुंचकर विरोध किया था और इसके बाद उन्हें पूरे मॉनसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया था.
अन्ना आंदोलन से चमके!
एक समय दिल्ली में सूचना के अधिकार को लेकर एक बड़े आंदोलन की नींव रखी गई. इस आंदोलन की आवाज सुल्तानपुर तक पहुंची. संजय सिंह आरटीआई एक्टिविस्ट के तौर पर काम करने लगे और फिर एक दिन अरविंद केजरीवाल संजय सिंह से मिलने के लिए सुल्तानपुर पहुंचे. साल 2010 में जब अन्ना हजारे ने जंतर मंतर पर धरना देने से लेकर रामलीला मैदान में अनशन किया, तो संजय सिंह को मंच संभालने की जिम्मेदारी मिली. संजय सिंह ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा.
AAP में मिला बड़ा जिम्मा
अन्ना आंदोलन में मनीष सिसोदिया और संजय सिंह खास रहे. यहां से धीरे-धीरे उनके राजनीतिक करियर की शुरुआत हुई. जहां आप ने चुनाव लड़ा जिसमें संजय सिंह की बड़ी भूमिका रही. उनकी तुलना मनीष सिसोदिया से होने लगी. 2013 में आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में चुनाव लड़ने का ऐलान किया. इस चुनाव में संजय सिंह को कैंडिडेट सेलेक्शन कमेटी का चेयरमैन बनाया गया. यानी दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों पर उम्मीदवार ढूंढने का जिम्मा पार्टी ने संजय सिंह के कंधों पर छोड़ दिया. चुनाव में जीत मिली और केजरीवाल की पार्टी कामयाबी के झंडे गाड़ती चली गई और संजय सिंह का पार्टी में कद बड़ा होता गया. संजय सिंह को दिल्ली के बाहर पंजाब में पार्टी की कमान सौंपी गई. यहां पर पार्टी ने कमाल करके दिखाया.
तमाम सियासी सफलताओं के बीच 4 अक्टूबर 2023 को उन्हें ईडी ने गिरफ्तार कर लिया. दिल्ली के कथित शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले में उन्हें अरेस्ट किया गया था, करीब 6 महीने जेल में रहने के बाद अब वो दोबारा बाहर आए हैं और अटैकिंग मोड में दिख रहे हैं.