Narayan Murthy: आपको सबसे बड़ा अफसोस किस बात का है? इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति ने बताया
Narayan Murthy: जब उनसे पूछा गया कि आपको सबसे ज्यादा अफसोस किस बात का है? इस सवाल पर नारायण मूर्ति ने कहा कि हालांकि उन्हें ऐसा कोई बड़ा अफसोस नहीं है लेकिन वह महसूस करते हैं कि कुछ बड़े फैसले थे जो नहीं लिए गए और अगर इंफोसिस ने सच्चे लोकतंत्र के रूप में काम नहीं किया होता तो ये पहल की जा सकती थीं.
N R Narayana Murthy: भारत के सबसे बड़े बिजनेस टाइकून में से एक और आईटी कंपनी इंफोसिस के संस्थापक एनआर नारायण मूर्ति ने अपनी जिंदगी के सबसे गौरवपूर्ण पल का खुलासा किया है. बता दें कि नारायण मूर्ति ने 1981 में इंफोसिस की स्थापना की थी और वह 2002 तक कंपनी के सीईओ रहे.
अपनी अब तक की 43 साल की इस यात्रा में आईटी सेक्टर में दिए अपने बहुमूल्य योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. नंदन नीलेकणि, क्रिस गोपालकृष्णन ने एक साथ मिलकर इंफोसिस के विकास के लिए कई सालों तक काम किया. उसी का परिणाम है कि इंफोसिस आज भी देश की सर्वश्रेष्ठ आईटी कंपनियों में से एक बनी हुई है.
बताया अपनी जिंदगी का सबसे गौरवपूर्ण पल
हाल ही में इंफोसिस के फाउंडर नारायण मूर्ति ने अपनी जिंदगी के सबसे गौरपपूर्ण पल के बारे में बताया. इंडिया टुडे कॉन्क्लेव 2024 में शुक्रवार को बोलते हुए नारायण मूर्ति ने बताया कि मेरी जिंदगी का सबसे गौरवपूर्ण पल वो था जब मेरी कंपनी नैस्डेक (Nasdaq) में लिस्ट होने वाली भारत की पहली कंपनी बनी.
'यह कुछ ऐसा था जो किसी भारतीय कंपनी ने अब तक नहीं किया था'
"जब हम नैस्डेक में लिस्ट होने वाली पहली भारतीय कंपनी बन गए थे, तब मैं नैस्डेक में एक ऊंचे स्टूल पर उन चिलचिलाती रोशनी के सामने बैठा था. मुझे लगता है कि, कुछ मायनों में, हम कुछ ऐसा कर रहे थे जो किसी भी भारतीय कंपनी ने अब तक नहीं किया था."
आपको सबसे ज्यादा अफसोस किस बात का है?
जब उनसे पूछा गया कि आपको सबसे ज्यादा अफसोस किस बात का है? इस सवाल पर नारायण मूर्ति ने कहा कि हालांकि उन्हें ऐसा कोई बड़ा अफसोस नहीं है लेकिन वह महसूस करते हैं कि कुछ बड़े फैसले थे जो नहीं लिए गए और अगर इंफोसिस ने सच्चे लोकतंत्र के रूप में काम नहीं किया होता तो ये पहल की जा सकती थीं.
उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि मुझे कोई पछतावा है या नहीं क्योंकि पहले दिन से ही हमने एक प्रबुद्ध लोकतंत्र के रूप में काम किया. कुछ बेहद साहसी चीजें थीं जो हमने नहीं कीं. अगर हम सच्चे लोकतंत्र के रूप में काम नहीं करते तो हम ऐसा कर सकते थे और शायद इसी वजह से हमारी कुछ वृद्धि अन्य से कम रही. यह अफसोस की बात नहीं है लेकिन यह एक बात है. गौरतलब है कि इंफोसिस नैस्डेक में 1999 मार्च को लिस्ट हुई थी.