Union Budget 2024: जून में महंगाई में उछाल सब्जियों के कारण आया. हालांकि अनाज, दूध, फल और चीनी की कीमतों में सब्जियों के मुकाबले कम ही बढ़ोतरी हुई है. जून में बारिश ने साथ नहीं दिया और गर्मी भी बहुत ज़्यादा रही. हालांकि, खरीफ की फसल (चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का, मूंग, मूंगफली, गन्ना, सोयाबीन और कपास समेत अन्य) के लिए ये चिंता की बात नहीं है, क्योंकि इन्हें ज़्यादातर जुलाई और अगस्त में बोया जाता है, जबकि सितंबर और अक्टूबर में काटा जाता है. लेकिन अनियमित मौसम (बारिश और गर्मी) ने सब्जियों को नुकसान पहुंचाया है.
पिछले एक साल से सब्ज़ियां एक बड़ी समस्या बनी हुई हैं. पिछले वित्त वर्ष में महंगाई जुलाई में 11.5% के शिखर को छूने के बाद कम होने लगी थी. लेकिन ये राहत ज़्यादा दिन तक नहीं रही क्योंकि नवंबर से सब्जियों की बढ़ती महंगाई के कारण महंगाई बढ़ने लगी. तब से, सब्जियों की मुद्रास्फीति दोहरे अंकों में रही है. नवंबर 2023 से जून 2024 के दौरान औसतन 26.9% और खाद्य मुद्रास्फीति में लगभग 50% की वृद्धि में सब्जियों का ही योगदान रहा है.
बिजनेस टुडे की अक्टूबर 2023 की रिपोर्ट 'नॉट ऑन टॉप ऑफ इट' में कहा गया था कि मौसम के अलावा मांग और आपूर्ति में अंतर भी सब्जियों की कीमतों में बढ़ोतरी के कारणों में से एक है.अप्रैल में 'भारत में सब्जियों की महंगाई में कमी' नाम से आई एक रिपोर्ट में कहा गया कि मौसम के झटकों के कारण सब्जियों की कीमतें 2023 के मुकाबले काफी ज्यादा थी.
पिछले साल के कुछ मौसमी झटकों और हाल ही में जून में पड़ी भीषण गर्मी ने सब्ज़ियों की कीमतों को ऊंचा रखा है. जून के आंकड़ों से पता चलता है कि आलू और प्याज़ में महंगाई दर 58%, टमाटर में 26.4%, लहसुन में 78% और ज़्यादातर हरी सब्ज़ियों में भी महंगाई दर दो अंकों में है.
उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, टमाटर जून 2022 में 52 रुपये प्रति किलोग्राम, जुलाई 2023 में 109 रुपये और जुलाई 2024 में 120 रुपये प्रति किलोग्राम के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. सवाल आता है कि आखिर इन कीमतों को काबू में कैसे किया जाए.
एक रिपोर्ट के मुताबिक, कम समय के लिए कुछ उपायों को अपनाकर कीमतों पर काबू किया जा सकता है. जैसे- खाद्य भंडार को मुक्त करना, आयात को सुविधाजनक बनाना, निर्यात को प्रतिबंधित करना और जमाखोरी पर लगाम लगाना. हालांकि, पिछले 4-5 वर्षों में भारत में खाद्य पदार्थों की कीमतों में बार-बार होने वाले उतार-चढ़ाव स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण हैं. स्टडी से पता चलता है कि आने वाले वर्षों में ये और बढ़ेंगे. इसलिए, कम समय के लिए अपनाए जाने वाले सुझावों पर तत्काल कदम उठाने की जरूरत है.
आखिर में सभी उम्मीदें मानसून पर ही टिकीं हैं. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार, हमें उम्मीद है कि इस वित्त वर्ष में मानसून अच्छा रहेगा और खरीफ की बुआई में तेजी आएगी, जिससे कृषि उत्पादन में सुधार होगा, खाद्य कीमतों पर दबाव कम होगा और महंगाई कम होगी.
Stay updated with our latest videos. Click the button below to subscribe now!