सौरमंडल में कई रहस्य छुपे हुए हैं. वैज्ञानिक नई-नई खोज कर रहे हैं. इस बीच वैज्ञानिकों ने हमारे सौरमंडल के सबसे छोटे ग्रह बुध के बारे में एक आश्चर्यजनक खोज की है. नासा के मैसेंजर अंतरिक्ष यान से प्राप्त डेटा का उपयोग करते हुए, शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि बुध की पपड़ी के नीचे हीरे की 10 मील मोटी परत हो सकती है.
यह खोज सूर्य के सबसे निकट स्थित ग्रह के बारे में कई लंबे समय से चले आ रहे रहस्यों को स्पष्ट कर सकती है. बुध ग्रह अपनी असामान्य रूप से अंधेरी सतह, घने कोर और ज्वालामुखी गतिविधि के जल्दी खत्म होने के कारण वर्षों से वैज्ञानिकों को उलझन में डालता रहा है. बुध की सतह पर ग्रेफाइट के धब्बों की मौजूदगी ने वैज्ञानिकों को यह अनुमान लगाने पर मजबूर कर दिया कि ग्रह पर कभी कार्बन से भरपूर महासागर था. इस महासागर ने ही ग्रेफाइट के धब्बों का निर्माण किया होगा और बुध की सतह का रंग गहरा होने में योगदान दिया होगा.
नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित यह नया अध्ययन हमारे सौर मंडल में ग्रहों के निर्माण और विकास को समझने के लिए नए रास्ते खोलता है. हालांकि, नए शोध से पता चलता है कि बुध का मेंटल शायद ग्रेफाइट से नहीं बना है जैसा कि पहले सोचा गया था, बल्कि हीरे से बना है. इस हीरे की परत का निर्माण बुध के मेंटल और कोर के बीच की सीमा पर उच्च दबाव की स्थितियों के कारण हुआ है.
वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर प्रयोगशालाओं में बुध की आंतरिक स्थितियों को फिर से बनाया. एक बड़े वॉल्यूम प्रेस का उपयोग करते हुए, उन्होंने सिंथेटिक सिलिकेट पर सात गीगापास्कल से अधिक दबाव डाला, जिससे ग्रह के भीतर चरम वातावरण का अनुकरण किया गया. टीम का मानना है कि हीरे की परत दो प्रक्रियाओं के माध्यम से बनी होगी. कार्बन-समृद्ध मैग्मा महासागर का क्रिस्टलीकरण और बुध के प्रारंभिक तरल कोर का क्रमिक क्रिस्टलीकरण.
यह खोज यह बता सकती है कि बुध की प्रमुख ज्वालामुखी गतिविधि लगभग 3.5 अरब साल पहले अपेक्षाकृत जल्दी क्यों समाप्त हो गई. हीरे की परत ने तेजी से गर्मी हटाने में मदद की होगी, जिससे ज्वालामुखी गतिविधि जल्दी समाप्त हो गई होगी.