Electoral Bond: तब तक तो खत्म हो जाएगा चुनाव, चुनावी बॉन्ड पर SBI की गुजारिश पर उठ रहे सवाल
15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को तत्काल प्रभाव से चुनावी बॉन्ड जारी करना बंद करने और खरीदारों के नाम, बॉन्ड के मूल्य और उसे प्राप्त करने वालों की पूरी जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दिया था.
Electoral Bond: भारतीय स्टेट बैंक (SBI) ने राजनीतिक दलों द्वारा भुनाए गए चुनावी बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने के लिए सुप्रीम कोर्ट से 30 जून तक का समय मांगा है. बता दें कि 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को तत्काल प्रभाव से चुनावी बॉन्ड (Electoral Bond) जारी करना बंद करने और खरीदारों के नाम, बॉन्ड के मूल्य और उसे प्राप्त करने वालों की पूरी जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को सौंपने का आदेश दिया था. यही नहीं सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा था कि एसबीआई से जानकारी मिलने के बाद चुनाव आयोग 13 मार्च तक इस जानकारी का खुलासा करे.
एसबीआई ने जो समय मांगा है वो तो ठीक है, लेकिन मसला ये है कि 30 जून तक देश में लोकसभा का चुनाव पूरा हो जाएगा और अगर इलेक्टोरल बॉन्ड में कुछ गड़बड़ियां भी होंगी तो उनका असर चुनावों पर नहीं पड़ेगा. एसबीआई की इस समय सीमा को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि कहीं यह एक सोची-समझी रणनीति के तहत तो नहीं किया गया.
राहुल गांधी ने मोदी सरकार को घेरा
इस खबर के सामने आने के बाद कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मोदी सरकार को घेरने की कोशिश की है. उन्होंने ट्वीट कर कहा- 'नरेंद्र मोदी ने ‘चंदे के धंधे’ को छिपाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। जब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इलेक्टोरल बॉण्ड का सच जानना देशवासियों का हक़ है, तब SBI क्यों चाहता है कि चुनाव से पहले यह जानकारी सार्वजनिक न हो पाए? एक क्लिक पर निकाली जा सकने वाली जानकारी के लिए 30 जून तक का समय मांगना बताता है कि दाल में कुछ काला नहीं है, पूरी दाल ही काली है। देश की हर स्वतंत्र संस्था ‘मोडानी परिवार’ बन कर उनके भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने में लगी है। चुनाव से पहले मोदी के ‘असली चेहरे’ को छिपाने का यह ‘अंतिम प्रयास’ है।
SBI ने समय सीमा बढ़ाने के लिए क्या वजह बताई
एसबीआई ने अपने आवेदन में कहा कि अदालत ने 12 अप्रैल 2019 से 15 फरवरी 2024 तक के चुनावी बॉन्ड्स का ब्योरा देने के लिए कहा है. इस अवधि के दौरान राजनीतिक दलों को चंदा देने में 22,210 इलेक्टोरल बॉन्ड का उपयोग किया गया है. भुनाए गए बॉन्ड्स को एसबीआई की रजिस्टर्ड ब्रांचों द्वारा मुंबई की मुख्य शाखा में सीलबंद लिफाफे में जमा कराया गया था. ऐसे में सूचना के दो अलग-अलग स्रोत हैं जिनका मिलना करने में समय लगेगा.
सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई थी इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक
गौरतलब है कि 15 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर यह कहते हुए रोक लगा दी थी कि यह सूचना का अधिकार (RTI) और संविधान में दिए गए भाषण एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन करता है. इस स्कीम के तहत राजनीतिक दलों को चंदा देने वाले व्यक्ति या संस्था का नाम गुप्त रखा जाता था. यानी आम आदमी या कोई भी नागरिक यह पता नहीं कर सकता था कि राजनीतिक दल कहां से चंदा ले रहे हैं. भारत सरकार ने साल 2017 में इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की घोषणा की थी और 29 जनवरी 2018 को कानूनी बनाकर इसे लागू कर दिया था.