Business News: स्वास्थ्य बीमा धारकों को पॉलिसी का प्रीमियम कम होने के मोर्चे पर राहत मिलती नहीं दिख रही है. ऐसा इसलिए है क्योंकि बीमा पॉलिसी के प्रीमियम भुगतान पर लगने वाले जीएसटी (GST) को हटाने को लेकर राज्य सरकारों के बीच अभी तक कोई आम सहमति नहीं बनी है.
नहीं बनी आम सहमति
मामले के जानकार दो अधिकारियों ने कहा वरिष्ठ नागरिकों को छूट, पूर्ण और आंशिक राहत, इनपुट क्रेडिट टैक्स (ITC) के साथ या इसके बगैर 5 प्रतिशत के टैक्स को कम किया जाना...इन सभी मुद्दों पर अभी बातचीत होनी बाकी है.
सरकारों ने दिया राजस्व में घाटे का हवाला
राज्य सरकारों का कहना है कि हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम में जीएसटी से राहत देने से उन्हें भारी राजस्व घाटा होगा. उन्होंने इससे 3200 से 4000 करोड़ रुपए तक के घाटे की आशंका जताई है. हालांकि अधिकारियों ने कहा कि, नुकसान कितना होगा यह यह आईटीसी के बरकरार रहने पर निर्भर करता है.
एक अधिकारी ने कहा कि कर प्रणाली में कुछ बारीकियां हैं. कुछ राज्य जीएसटी राहत से उनके राजस्व को होने वाले नुकसान को लेकर चिंतित हैं. हालांकि कुछ का मानना है कि कर में राहत देने से स्वास्थ्य बीमा का दायरा बढ़ेगा. हालांकि ज्यादातर राज्यों का मानना ये है कि जीएसटी हटाने से जो भी राजस्व नुकसान होगा उसकी भरपाई उभरती अर्थव्यवस्था की बदौलत अन्य क्षेत्रों से की जा सकती है.
हेल्थ पॉलिसी पर कितना देना होता है जीएसटी
बता दें कि वर्तमान में हेल्थ इंश्योरेंस प्रीमियम पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है. गौरतलब है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी द्वारा स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम को जीएसटी के दायरे से बाहर करने की वकालत करने के बाद देश में इस मुद्दे पर बहस तेज हुई है. उन्होंने कहा था कि 18% जीएसटी के कारण ज्यादातर लोग स्वास्थ्य बीमा का लाभ नहीं ले रहे हैं.
बहरहाल, देखते हैं कि आज जीएसटी काउंसिल की होने वाली बैठक में इसको लेकर क्या नतीजा निकलता है. अगर हेल्थ पॉलिसी के प्रीमियम पर जीएसटी हटता है तो लोगों को बड़ी राहत मिलेगी.