USA Economic Slowdown: वैश्विक आर्थिक मंदी. ये खबरें जब भी आती हैं, दुनियाभर के लोग इस चिंता में आ जाते हैं कि नौकरी रहेगी या जाएगी. शुरुआत अमेरिका या यूरोप से होती है और देखते ही देखते पूरी दुनिया इसकी जद में आ जाती है. लोगों की नौकरियां जाती हैं, लोगों की नौकरियां छिनती हैं. अमेरिका एक बार फिर इसी मंदी की जद में है, जिसका असर दुनियाभर के तमाम देशों पर पड़ना तय है.
अमेरिका में सबसे बड़ी मंदी साल 1929 में आई थी जो लगातार 1939 तक बरकरार रही थी. एक बार फिर ऐसे ही हालात बन रहे हैं.
अब फॉक्स बिजनेस, बीसीए रिसर्च चीफ ग्लोबल स्ट्रेटेजिस्ट पीटर बेरेजिन ने एक बार फिर चेताया है कि साल 2025 से ठीक पहले एक बार फिर आर्थिक मंदी आ सकती है. उन्होंने यह भी चेताया है कि इसकी वजह से लोगों की नौकरियां जा सकती हैं. इसकी वजह से लोगों की मुश्किलें बढ़ेंगी, नौकरियां छिनेंगी, स्टॉक मार्केट लुढकेगा. यूरोप और चीन में इसका असर देखने को मिलेगा.
आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि जब किसी देश की अर्थव्यवस्था, लगातार कई महीनों तक पटरी से उतर जाती है, तब आर्थिक मंदी आती है. उदाहरण के दौर पर समझें कि लगातार दो छमाही तक, भारत में आर्थिक विकास थम जाए, कारोबार लुढकने लगे, नए उद्योग डूबने लगें, तो यह स्थिति मंदी कही जाएगी. अमेरिका में ऐसा ही कुछ होता नजर आ रहा है. अमेरिका में कुछ भी होगा, उसका असर दुनिया में पड़ना तय होगा.
अगर आर्थिक विश्लेषकों की चेतावनी को सही मानें तो अमेरिका की आर्थिक विकास दर 1 प्रतिशत से भी कम रहेगी. फेडरल रिजर्व की पॉलिसी मेकिंग बॉडी ओपेन मार्केट कमेटी ने जून में ही उम्मीज जताई है कि आर्थिक विकास की दर वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए1 प्रतिशत रहेगी. फेड रिजर्व ने ब्याज की दरें 4 बार बढ़ा दी हैं, फैक्टसेट के मुताबिक करीब 500 कंपनियां, 0.4 प्रतिशत की विकास दर दिखा रही हैं. यह इसी वित्त वर्ष के चौथी तिमाही में ऐसा हो रहा है.
फोर्ब्स की रिपोर्ट के मतुाबिक अमेरिकी मंदी की खबरें, साल 2022 से ही चल रही हं. 2 साल बाद, अमेरिका में बेरोजगारी दी दर 3.8 प्रतिशत तक गिरी है. कंज्युमर प्राइस इंडेक्स में भी 0.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई है. अगस्त में यह 0.6 प्रतिशत तक पहुंच गया है.
आर्थिक विश्वेषक मानते हैं कि मंदी की वजह से Apple जैसी कंपनी को छंटनी करनी पड़ी है. गोल्डमैन 1300 से 1500 लोगों को बाहर निकालने की तैयारी में है. ऐप्पल को करीब 100 लोगों को बाहर निकालना पड़ा है. कैलिफोर्निया में 614 लोगों को ऐप्पल ने निकाला. गो प्रो, सोनोस, सिस्को, डेल, इंटेल, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी कंपनियो ने छंटनी की है.
गूगल ने करीब 200 लोगों को हाल ही में बाहर निकाला था, माइक्रोसॉफ्ट से 2000 लोग जा चुके हैं, इंटेल से 15,000 लोगों की छुट्टी हुई थी. हजारों लोगों की नौकरी गई है. एटमॉसफियर में 100 लोगों की नौकरी गई, इनडीड में 100, मोशनल में 550 लोगों की, वकासा ने 800 लोगों को बाहर निकाला है. दुनिया की कई कंपनियों ने छंटनी की है. आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि इनकी नौकरियां मंदी की वजह से जा रही हैं.
मंदी का असर भारत पर भी पड़ना तय है. मीडिया इंडस्ट्री पर इसका असर देखने को मिल रहा है. कई बड़े संस्थानों में लोगों की नौकरियां गई हैं. बड़े पदों पर भर्तियां नहीं हो रही हैं. एक्सचेंज फॉर मीडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक टीवी सेक्टर में करीब 18 से 20 प्रतिशत लोगों की नौकरियां गई हैं. डिजिटल सेक्टर में भी बड़े संस्थानों में नौकरियां गई हैं. यहां भी करीब 10 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है.
आर्थिक मामलों पर पैनी नजर रखने वाले आर्थिक विश्लेषक विवेकानंद राय बताते हैं कि भारत, विकासशील देश है. भारत की अर्थव्यवस्था का अपना एक बुनियादी ढांचा है, जिस पर वैश्विक उठा-पठक का असर तो पड़ता है लेकिन चिंताजनक स्थितियां सामने नहीं आती हैं. भारत के कुछ सेक्टर ऐसे हैं, जिन पर असर जरूर पड़ता है. भारत में अभी विदेशी कंपनियां निवेश कर रही हैं. वैश्विक मंदी की वजह से भारत में फॉरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट रुक सकता है या इसकी रफ्तार धीमी हो सकती है. दोनों स्थिति में भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार पर असर पड़ेगा, जो आर्थिक मंदी पर असर डालेगा.
साल 2019 से 20 के बीच भारत में विदेशी निवेश की दर 20 प्रतिशत तक बढ़ गई थी. 2021 और 22 के बीच 10 प्रतिशत का इजाफा देखा गया था था. पिछले वित्तीय वर्ष में यह दर 16 प्रतिशत तक आ गई थी. अभी के आंकड़े इशारा कर रहे हैं कि निवेश तो बढ़ा है लेकिन वैश्विक मंदी का खतरा भी है.