वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज देश का आम बजट पेश करने वाली हैं. इससे पहले सोमवार को देश का आर्थिक सर्वेक्षण संसद के पटल पर पेश किया गया. इस इकोनॉमिक सर्वे में सरकार का पूरा फोकस एग्रीकल्चर सेक्टर, प्राइवेट सेक्टर और PPP पर रहा है. इसमें संकेत मिले हैं कि ब्याज दरें तय करते समय खाद्य पदार्थों की कीमतों को खुदरा मुद्रास्फीति से अलग रखें, क्योंकि खाद्य पदार्थों की ऊंची कीमतें अक्सर मांग से प्रेरित नहीं बल्कि आपूर्ति से प्रेरित होती हैं.
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि मुख्य मुद्रास्फीति दर 3 प्रतिशत के आसपास होने के बावजूद आरबीआई ने एक नजर समायोजन वापस लेने और दूसरी अमेरिकी फेड पर रखते हुए काफी समय से ब्याज दरों में कोई चेंज नहीं किया है. पिछले एक साल में आठ महीनों तक खुदरा मुद्रास्फीति 5 प्रतिशत से अधिक रही है. यह मुख्य रूप से खाद्य पदार्थों, खासकर सब्जियों, दालों और अनाजों की उच्च कीमतों के कारण है, जिसने खुदरा मुद्रास्फीति को स्थिर रखा है. खाद्य पदार्थ उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में 46 प्रतिशत का योगदान करते हैं.
दरअसल, यही एक कारण है कि आरबीआई ब्याज दरों में कटौती नहीं कर पाया है. भले ही नीतिगत दरों पर की गई कार्रवाई खाद्य कीमतों को प्रभावित नहीं करती है, लेकिन उच्च खाद्य मुद्रास्फीति के सामान्य हो जाने की चिंता केंद्रीय बैंक को पीछे खींच रही है. आरबीआई के पक्ष में बोलने वाले लोग खाद्य कीमतों को कम करने का दायित्व सरकार पर डालते हैं. दरअसल, इस महीने सीएनबीसी टीवी 18 को दिए गए एक इंटरव्यू में आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा जब हम 5 प्रतिशत पर हैं और हमारा लक्ष्य 4 प्रतिशत है, तो मुझे लगता है कि ब्याज दरों में कटौती के बारे में बात करना बहुत जल्दबाजी होगी.
मई 2016 में लचीले मुद्रास्फीति के लिए वैधानिक ढांचे को लागू करने के लिए आरबीआई अधिनियम, 1934 में संशोधन किया गया था. सर्वे के मुताबिक खाद्य महंगाई पिछले दो सालों से पूरी दुनिया के लिए चुनौती बनी हुई है. भारत में कृषि क्षेत्र को खराब मौसम का शिकार होना पड़ा है. जलाशय में कमी आ गई तो फसल को नुकसान हुआ है जिससे खाद्य उत्पादन में कमी आ गई तो खाद्य वस्तुओं की कीमतें इसके चलते बढ़ गई. इसका नतीजा ये हुआ कि खाद्य महंगाई दर वित्त वर्ष 2022-23 में 6.6 फीसदी थी वो वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर 7.5 फीसदी पर जा पहुंची है.
सर्वे के मुताबिक खाद्य महंगाई पिछले दो सालों से पूरी दुनिया के लिए चुनौती बनी हुई है. भारत में कृषि क्षेत्र को खराब मौसम का शिकार होना पड़ा है. जलाशय में कमी आ गई तो फसल को नुकसान हुआ है जिससे खाद्य उत्पादन में कमी आ गई तो खाद्य वस्तुओं की कीमतें इसके चलते बढ़ गई. इसका नतीजा ये हुआ कि खाद्य महंगाई दर वित्त वर्ष 2022-23 में 6.6 फीसदी थी वो वित्त वर्ष 2023-24 में बढ़कर 7.5 फीसदी पर जा पहुंची है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका, जर्मनी और फ्रांस जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत में 2021-2023 के औसत मुद्रास्फीति में मुद्रास्फीति लक्ष्य से सबसे कम विचलन रहा है. अधिकांश राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मुद्रास्फीति की दर में कमी देखी गई, 36 में से 29 में दरें 6 प्रतिशत से कम दर्ज की गईं. हालांकि, जिन राज्यों में खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ी हैं, वहां ग्रामीण मुद्रास्फीति भी अधिक देखी गई है क्योंकि ग्रामीण उपभोग की टोकरी में खाद्य पदार्थों का भार अधिक है.
इकोनॉमिक सर्वे रिपोर्ट में बढ़ते कार्यबल और इसके अनुसार नौकरियों के सृजन का व्यापक अनुमान जाहिर किया गया है. हालांकि, इसमें ये भी कहा गया है कि देश के वर्कफोर्स में जरूरी नहीं कि कामकाजी उम्र में हर कोई नौकरी की तलाश में है, जबकि हमें खुद का रोजगार करने वालों को बढ़ावा देना है. सर्वेक्षण में कहा गया है कि अल्पावधि से मध्यम अवधि में नीतिगत फोकस के प्रमुख क्षेत्रों में रोजगार और कौशल सृजन, कृषि क्षेत्र की पूरी क्षमता का दोहन, एमएसएमई बाधाओं को दूर करना, भारत के हरित संक्रमण का प्रबंधन, चीनी समस्या से कुशलतापूर्वक निपटना, कॉर्पोरेट बांड बाजार को मजबूत करना, असमानता से निपटना और हमारी युवा आबादी की स्वास्थ्य की गुणवत्ता में सुधार करना शामिल है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि विकासशील देशों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में खाद्य पदार्थों का हिस्सा बहुत अधिक है. इसमें कहा गया है कि जब विकासशील देशों में केंद्रीय बैंक मुख्य मुद्रास्फीति को लक्षित करते हैं, तो वे प्रभावी रूप से खाद्य कीमतों को टारगेट करते हैं इसलिए, जब खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है, तो मुद्रास्फीति लक्ष्य खतरे में पड़ जाते हैं. इसलिए, केंद्रीय बैंक सरकार से खाद्य उत्पादों की कीमतों में वृद्धि को कम करने की अपील करता है. यह किसानों को उनके पक्ष में व्यापार के मामले में वृद्धि से लाभ उठाने से रोकता है.
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