India Europe Trade: यूरोपीय यूनियन (ईयू) में एक नया नियम बनाने पर विचार जारी है. इसमें यह होगा कि जो भी वस्तु वहां बेची जाएगी, उसके बनने में कितना जंगल काटा गया है, उसकी जानकारी देनी होगी. वस्तु के पैकेट पर एक कोड होगा, जिसे पढ़कर यह पता चलेगा कि वस्तु के बनने में जंगल की कटाई कम, ज्यादा या बहुत ज्यादा हुई है.
ईयू बस वही वस्तु खरीदेगा, जिसके बनने में जंगल की कटाई कम हुई हो. इससे भारत को अपने सामान को यूरोप में बेचने में मुश्किल होगी, क्योंकि इसके लिए भारत को अपने सामान को बनाने का तरीका बदलना होगा, जिससे खर्चा बढ़ जाएगा.
यह नियम विश्व भर में लागू होने के लिए ईयू फरवरी में अबूधाबी में होने वाली एक बड़ी बैठक में बात करना चाहता है. 26-29 फरवरी को अबूधाबी में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मिनिस्टि्रयल कांफ्रेंस 13 में इस मामले पर चर्चा की जाएगी.
लेकिन सूत्रों के मुताबिक भारत इस नियम से सहमत नहीं है और इस बैठक में इसका विरोध करेगा. क्योंकि इससे भारत को अपने सामान को बेचने में और भी अधिक दिक्कत होगी. इसके लिए भारत को अपने सामान के हर टुकड़े का हिसाब रखना होगा कि उसके बनने में कितना जंगल काटा गया है. यानी अतिरिक्त नियम के पालन में और लागत बढ़ेगी.
इन सबसे निर्यात नकारात्मक तौर पर प्रभावित होगा. यह मामला इतना जटिल है कि जिस वस्तू के बारे में यह जानकारी देनी है कि फाइनल प्रोडेक्ट में जंगल की कटाई कितनी हुई है, उस उत्पाद को बनाने में इस्तेमाल होने वाली चीजों के बारे में भी यही जानकारी देनी होगी. इस तरह से सभी तत्वों के निर्माण में जगंल की कटाई के बारे में बताना होगा.
ईयू ने एक और नियम भी बनाया है, जो 2026 से लागू होगा. इसमें यह होगा कि जो भी वस्तु वहां बेची जाएगी, उसके बनने में कितना कार्बन गैस निकला है, उसका टैक्स देना होगा. इससे लोहा, एल्युमिनियम जैसे सामान का निर्यात महंगा हो जाएगा, क्योंकि इनके बनने में कार्बन गैस बहुत निकलता है. इससे भारत के सामान को यूरोप में बेचना मुश्किल हो जाएगा. इसलिए भारत ने अपने सामान को बनाने के लिए ग्रीन ईंधन इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है, जिससे कार्बन गैस कम निकले.
भारत यह भी कह सकता है कि अगर ईयू और अन्य अमीर देश इस तरह के नियम लागू करना चाहते हैं, तो वे भारत को इसके लिए नई तकनीक और पैसा दें. इससे भारत को अपने सामान को बनाने और बेचने में आसानी होगी. भारत इस बात पर जोर दे सकता है कि वह कार्बन गैस कम करने के लिए तैयार है, लेकिन उसके लिए उसे मदद चाहिए. डब्ल्यूटीओ की एमसी13 की बैठक में भारत के इस रुख पर और स्पष्टा मिलेगी.