भारत में भी मौजूद है 'ममी' का ये अविश्वनीय इतिहास, जो अन्य ममी से पूरी तरह है अलग
भारत एक ऐसा देश है, जहां ना जाने कितना ऐसा अविश्वनीय इतिहास छुपा हुआ है, जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि अपने भारत में भी एक ममी है, जी हां, आपने सही सुना भारत में भी ममी है, जिसके बाल नाखून बढते है.
भारत एक ऐसा देश है, जहां ना जाने कितना ऐसा अविश्वनीय इतिहास छुपा हुआ है, जिसकी कल्पना भी नही की जा सकती है. लेकिन क्या आपको मालूम है कि अपने भारत में भी एक ममी है, जी हां, आपने सही सुना भारत में भी ममी है, जिसके बाल नाखून बढते है. जोकि अन्य ममियों की श्रृखंला से बहुत ही अलग और रहस्यमयी भी. इससे पहले कब्र में दफन या ताबूत में बंद कपडें की पट्टियों में लिपटी ममी के बारे में आपने सुना होगा. लेकिन भारत की ये ममी किसी ताबूत या फिर कब्र में दफन नहीं है बल्कि बैठी हुई अवस्था में या यू कह लिजिए की मेडिटेशन मुद्रा में है, और हैरान कर देने वाली बात ये है कि इस ममी की पूजा की जाती है, देश-विदेश से लोग देखने आते है.
करीब 550 साल पुरानी ये ''ममी'' हिमाचल प्रदेश के ठंडे रेगिस्तान कहे जाने वाले लाहौल स्पीति जिले में स्थित है. स्पीति घाटी की ऐतिहासिक ताबो मठ (TaboMonastery) से करीब 50 किमी दूर भारत-चीन सीमा पर और समुद्रतल से 10,499 फीट की ऊंचाई पर गयू नाम के गांव में मौजूद है. स्थानीय लोग 'ममी' को भगवान समझकर पूजते हैं और लोग इसे जिंदा भगवान मानते हैं. भारत तिब्बत सीमा पर हिमाचल के लाहौल स्पीति के गयू गांव में मिली इस 'ममी' का रहस्य आज भी बरकरार है.
कहा जाता है कि ये ममी तिब्बत से गयू गांव आए लामा सांगला तेनजिंग की है, जो सैंकड़ों वर्ष पहले तिब्बत से भारत उन बौद्ध भिक्षुओं के साथ आए थे जो कभी सिल्क रुट के रास्ते व्यापार के सिलसिले में भारत और तिब्बत के मध्य व्यापारियों के साथ आते जाते थे. उस समय बौद्ध भिक्षु सांगला तेनजिंग यहां मेडिटेशन के लिए रुक गए और वो ध्यान की मुद्रा में बैठे जब लामा ने साधना में लीन होते हुए अपने प्राण त्यागे थे उस समय उनकी उम्र मात्र 45 साल थी. दुनिया में यह एकमात्र ममी है जो बैठी हुई अवस्था में है.
आपको बता दे कि इस ममी की वैज्ञानिक जांच में इसकी उम्र 550 साल बताई गयी है. ममी बनाने में एक खास किस्म का लेप मृत शरीर पर लगाया जाता है, लेकिन इस ममी पर किसी किस्म का लेप नहीं लगाया है फिर भी इतने वर्षों से यह ममी कैसे सुरक्षित है? ये राज आज भी बरकरार है.
सबसे चौंकाने वाली बात यह है जो यहां के लोग बताते हैं कि इस ममी के बाल और नाखून आज भी बढ़ रहे हैं. आपको यह बात जानकर जरा भी यकीन नहीं हो रहा होगा, लेकिन इस बात को स्थानीय लोग बिल्कुल सच बताते हैं. एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, 1975 में यहां आए भूकम्प में यह ममी जमीन में दफ़न हो गयी थी और आईटीबीपी (भारत-तिब्बत सीमा पुलिस) के जवानों को सड़क बनाते समय खुदाई में यह ममी फिर मिली और खुदाई के समय इस ममी के सिर पर कुदाल लगने से खून तक निकल आया था, जो कि सामान्य तौर पर संभव नहीं है और ममी पर इसके ताजा निशान को आज भी देखा जा सकता है. 2009 तक यह ममी ITBP के कैम्पस में रखी हुई थी, जिसके बाद ममी के देखने वालों की भीड़ देखकर इस ममी को ग्रामीणों ने ममी के अपने गाँव में स्थापित कर लिया.