अर्थव्यवस्था में तीसरे नंबर पर आने के बाद भी गरीब रहेगा भारत! जानें क्यों RBI के पूर्व गवर्नर ने किया ये दावा
Ex RBI Governor on Indian Economy: आरबीआई के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने एक चौंकाने वाला दावा किया है. इस दावे से पीएम मोदी के विकसित भारत के सपने को बड़ा झटका लग सकता है
Ex RBI Governor on Indian Economy: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर डी सुब्बाराव ने कहा ने चौंकाने वाला बयान दिया है. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के अनुसार भारत 2029 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. अगर ऐसा होता भी है तो भी इसमें खुशी मनाने की कोई वजह नहीं है क्योंकि ऐसा होने के बाद भी भारत गरीब रह सकता है.
'अमीर देश बनने का मतलब एक विकसित देश बनना नहीं'
एक किताब की लॉन्चिंग के मौके पर उन्होंने सऊदी अरब का हवाला देते हुए कहा कि अमीर देश बनने का मतलब एक विकसित देश बनना नहीं है. प्रधानमंत्री मोदी की बात को याद करते हुए जिसमें उन्होंने कहा था कि मेरे अर्थशास्त्रियों ने कहा है कि मेरे तीसरे कार्यकाल के खत्म होने से पहले भारत अमेरिका, चीन के बाद दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा.
हम आज भी एक गरीब मुल्क
सुब्बाराव ने कहा कि यह संभव है कि भारत तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाए लेकिन इसमें खुशी मनाने का कोई कारण नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि हम एक बड़ी अर्थव्यवस्था हैं क्योंकि हम 1.40 अरब लोग हैं और इतनी बड़ी आबादी ही यहां उत्पादन का कारण है. हम एक बड़ी अर्थव्यवस्था हैं क्योंकि हमारे पास लोग है लेकिन हम अभी भी एक गरीब मुल्क हैं. उन्होंने कहा कि आज भारत 4 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है लेकिन हम आज भी एक गरीब मुल्क हैं.
प्रति व्यक्ति आय में हम 139वें स्थान पर
पूर्व गवर्नर ने कहा कि 2600 डॉलर प्रति व्यक्ति आय के साथ आज भारत प्रति व्यक्ति आय के मामले में दुनिया में 139वें स्थान पर है. ब्रिक्स और जी-20 देशों में भी हम सबसे गरीब देश हैं.
इसलिए आगे बढ़ने का एजेंडा बिल्कुल साफ है. उन्होंने कहा कि विकास दर में तेजी लाकर और सभी को समान लाभ सुनिश्चित करने पर ही भारत विकसित राष्ट्र बन सकेगा.
विकसित बनने के लिए बताई 4 जरूरी बातें
एक विकसित राष्ट्र बनने के लिए उन्हें चार जरूरी बातें भी बताईं. सुब्बाराव ने कहा कि भारत को विकसित राष्ट्र बनाने के लिए कानून का शासन, मजबूत राज्य, जवाबदेही और संस्थानों का स्वायत्तता जरूरी है.