हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत को सौभाग्यदायक और संतान की प्राप्ति में सहायता देने वाला माना गया है. इस व्रत को महिलाएं ज्येष्ठ माह की अमावस्या के दिन रखती हैं और पति की लंबी आयु की कामना करती हैं. इस दिन सुहागिन महिलाएं वट मतलब बरगद के पेड़ की पूजा-अर्चना करती हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, सावित्री ने यमराज को अपने पति सत्यवान के प्राण लौटाने पर विवश कर दिया था. इस कारण सुहागिन स्त्रियां पति की दीर्घायु और कुशलता की कामना के लिए वट सावित्री व्रत को करती हैं.
पुराणों में वर्णित है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेशा का निवास होता है. मान्यता है कि इस वृक्ष के नीचे बैठकर पूजन करने, व्रत कथा आदि सुनने से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. मान्यता है कि इसी दिन पतिव्रता सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस ले लिए थे. तब से ही सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और अच्छी सेहत के लिए इस व्रत को करती हैं.
इस व्रत में वट वृक्ष की पूजा करने से पहले महिलाएं वृक्ष को पंखा भी झलते हैं. साथ ही, जल अर्पित करके कच्चा धागा गले में पहनती हैं. देश के कई हिस्सों में इस मौके पर महिलाएं इकट्ठा होती हैं और पारंपरिक गीत गाते हुए पूजा करती हैं.