दिल्ली हाई कोर्ट ने Google और Microsoft को अपने पिछले आदेश के संबंध में एक रिव्यू याचिका फाइल करने के निर्देश दिए हैं जिसमें सर्च इंजनों को यूआरएल के बिना नॉन-कंसेन्सुअल वाली इंटीमेट फोटोज की पहचान कर हटाने को कहा गया था. अदालत ने कंपनियों की इस बात को समझा है कि इस तरह की फोटोज को पहचानने के लिए फिलहाल कंपनियों के पास कोई तकनीक नहीं है.
सबसे पहले तो ये जानते हैं कि नॉन-कंसेन्सुअल इंटीमेट इमेजेज यानी NCII क्या है. यह किसी थर्ड पार्टी द्वारा यूजर की सहमति के बिना ऑनलाइन शेयर की गई पर्सनल फोटोज हैं. इसे लेकर Google और माइक्रोसॉफ्ट के मामले को लड़ रहे वकीलों ने दावा किया है कि कंपनियों के पास NCII को ऑटोमैटिकल तरह से पहचानने की क्षमता नहीं है. हालांकि, वो यूआरएल को डी-इंडेक्स करके अपने प्लेटफॉर्म जैसे Google सर्च और बिंग पर दिखने से हटा सकते हैं. लेकिन यह सॉल्यूशन भी बेकार हो जाता है तो इसके लिए कोई स्पेसिफिक यूआरएल नहीं होता है.
काउंसिल्स ने कहा, चाइल्ड पॉर्नोग्राफी को पहचानने का तरीका मौजूद है क्योंकि इसमें इमेजरी से बच्चों को पहचानना होता है लेकिन यह NCII पर लागू नहीं किया जा सकता है, क्योंकि AI के जरिए कंसेंट देना अभी के लिए एक चुनौती भरा काम है. चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की पीठ ने कहा, ''इस अदालत का विचार है कि अपीलकर्ताओं को एक रिव्यू याचिका दायर करनी चाहिए जिससे इस बात पर संज्ञान में लाया जा सके.'' अगर अपीलकर्ता रिव्यू याचिका के आदेश से संतुष्ट नहीं हैं तो अपीलकर्ता वर्तमान याचिकाओं की जांच की मांग दोबारा रख सकते हैं.
क्या है मामला: बता दें कि एक महिला ने याचिका दायर कर कुछ साइट्स को ब्लॉक करने के बारे में कहा था जिस पर उसकी इंटीमेट फोटोज पड़ी हुई थीं. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए सिंगल-बेंच जज ने अपने फैसले में इंटरनेट मीडिया मीडिएटर्स को चेतावनी दी थी कि अगर नॉन-कंसेंशुअल इंटीमेट फोटोज नहीं हटाई जाती हैं तो वो अपनी सिक्योरिटी खो देंगे.