हथियारों के लिए AI का इस्तेमाल न करने के अपने वादे से मुकरा Google
दिग्गज टेक कंपनी गूगल ने हथियार प्रणालियों या निगरानी तकनीकों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग से दूरी बनाए रखने की अपनी पुरानी प्रतिबद्धता को अचानक बदल दिया है. पिछले सप्ताह, कंपनी ने अपनी नीति में बिना किसी सार्वजनिक घोषणा के महत्वपूर्ण बदलाव किए, जिससे वैश्विक स्तर पर बहस छिड़ गई है.
AI Google Policy: टेक दिग्गज गूगल ने हथियार प्रणालियों और निगरानी तकनीकों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग से दूरी बनाए रखने की अपनी पुरानी नीति में बिना किसी बड़ी घोषणा के बदलाव कर दिया है.
यह बदलाव वैश्विक स्तर पर तकनीकी नैतिकता और मानवाधिकारों को लेकर चिंता बढ़ा रहा है.
क्या था गूगल का पुराना रुख?
2018 में, गूगल ने अपनी AI सिद्धांत नीति जारी की थी, जिसमें उसने स्पष्ट रूप से कहा था कि वह एआई तकनीक को घातक हथियारों और सर्विलांस ऑपरेशन्स में शामिल नहीं करेगा. यह नीति तब बनाई गई थी जब गूगल को अमेरिकी सैन्य प्रोजेक्ट मावेन में अपनी भागीदारी के कारण कर्मचारियों और मानवाधिकार संगठनों की भारी आलोचना झेलनी पड़ी थी.
अब क्या बदल गया है?
गूगल ने अब अपनी नीति में एक नया लचीला दृष्टिकोण अपनाया है, जिसमें वह उत्तरदायी उपयोग की अनुमति देता है. हालांकि, इस नीति में यह साफ नहीं किया गया कि किसे और किस सीमा तक यह तकनीक दी जाएगी.
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बदलाव का मतलब यह हो सकता है कि गूगल अब एआई से जुड़े सैन्य अनुबंधों में प्रवेश कर सकता है, जिससे हथियार प्रणालियों और निगरानी तकनीकों के विकास में उसका योगदान बढ़ सकता है.
आलोचना और वैश्विक चिंता
गूगल के इस फैसले से तकनीकी और मानवाधिकार संगठनों में गहरी चिंता है. कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि एआई का सैन्य उपयोग वैश्विक शांति के लिए गंभीर खतरा बन सकता है.
गूगल का यह कदम केवल एक नीति बदलाव नहीं है, बल्कि यह एआई तकनीक के सैन्यीकरण की ओर एक महत्वपूर्ण संकेत है.
टेक इंडस्ट्री पर पड़ सकता है असर
गूगल के इस बदलाव से अन्य टेक कंपनियों पर भी प्रभाव पड़ सकता है. माइक्रोसॉफ्ट और एमेज़न पहले से ही अमेरिकी रक्षा विभाग के साथ कई एआई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं. ऐसे में यह बदलाव गूगल को भी इस दौड़ में शामिल कर सकता है.
आगे की राह?
इस नीति बदलाव के बाद, सरकारें और मानवाधिकार संगठन अब यह सुनिश्चित करने के लिए दबाव बना सकते हैं कि एआई का दुरुपयोग न हो और इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों के तहत नियंत्रित किया जाए.