Dating Apps Fake Profiles: लोगों से कनेक्ट करने या रिलेशनशिप बनाने के लिए डिजिटल दुनिया ने काफी तरक्की की है. डेटिंग और मैट्रीमोनी ऐप्स ने इस सेक्टर में काफी बढ़ोतरी की है. पहले के समय में जहां घरवाले ही रिश्ता पक्का करते थे, वहीं अब लोग अपना पार्टनर खुद ही ढूंढने पर विश्वास रखते हैं. इसी के लिए इस तरह की ऐप्स या प्लेटफॉर्मों का इस्तेमाल किया जाता है. लोगों को यह काफी आसान लगता है लेकिन इसकी भी अपनी ही चुनौतियां हैं.
हाल ही में, एक एक्सक्लूसिव सिंगल्स क्लब जूलियो ने ग्लोबल पब्लिक ओपिनियन कंपनी यूगॉव के साथ मिलकर भारत के आठ प्रमुख शहरों में एक सर्वे किया है. इस सर्वे में डेटिंग और मैट्रिमोनियल ऐप्स के यूजर्स पर इन ऐप्स के प्रभाव का अध्ययन किया गया है. चलिए जानते हैं इनके बारे में.
फेक प्रोफाइल्स और प्राइवेसी: सर्वे में पाया गया कि 78% महिलाओं को इन ऐप्स पर फेक प्रोफाइल का सामना करना पड़ा. इसके चलते यूजर्स बेहतर प्राइवेसी कंट्रोल और आइडेंटिटी वेरिफिकेशन के लिए प्रेरित हुए हैं. वहीं, 82% महिलाओं का मानना है कि सेफ्टी और ऑथेंटिसिटी के लिए ऐसे प्लेटफॉर्म के लिए सरकारी आईडी के जरिए वेरिफिकेशन होना जरूरी है.
रियल-लाइफ कनेक्शन्स की कमी: एक और बड़ा इश्यू ये है कि 3 में से 2 लोग उन लोगों को से नहीं मिले जिनसे वो डेटिंग या मैट्रिमोनियल ऐप्स पर बात कर रहे हैं. ऐसे में जब तक इन-पर्सन बात होगी नहीं तो एक अच्छा मैच मिलेगा नहीं.
मेंटल हेल्थ इम्पैक्ट: लगभग आधे लोगों ने कहा है कि इन ऐप्स के इस्तेमाल के चलते मेंटल हेल्थ की समस्या भी आती है. क्योंकि यह प्रोसेस व्यक्ति को इमोशनली थका देता है. साथ ही एक अजीब सा स्ट्रेस भी रहता है.
थकाने वाला है ऐप का इस्तेमाल: कई यूजर्स अपने लिए मैच ढूंढते-ढूंढते या स्वाइप करते-करते थक जाते हैं. लगभग 70% यूजर्स को यह प्रोसेस बहुत स्ट्रेसफुल लगता है.
पर्सनलाइजेशन: चुनौतियों को देखते हुए, 3 में से 2 लोगों ने मौजूदा ऐप फीचर्स पर निर्भर रहने के बजाय पर्सनलाइज्ड एआई मैचमेकर में ज्यादा रुचि दिखाते हैं.