क्या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) हमारे सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित कर रहा है? क्वींसलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं डेबोरा ब्राउन और पीटर एलर्टन के अनुसार, यह आशंका वास्तविक हो सकती है.
हममें से अधिकांश लोग सीमित दायरे में ही सोचने में सक्षम होते हैं. कल्पना करें कि आपको बिना कलम, कागज या कैलकुलेटर के 16,951 को 67 से भाग देना हो. या फिर अपने फोन पर उपलब्ध सूची के बिना पूरे हफ्ते की खरीदारी करनी हो. तकनीक ने हमारी याददाश्त और गणना करने की क्षमता पर निर्भरता बढ़ा दी है.
आज एआई हमारी कई मानसिक प्रक्रियाओं को आसान बना रहा है. गूगल पर तुरंत कोई भी जानकारी खोजी जा सकती है, कैलकुलेटर जटिल गणनाएँ सेकंडों में कर देता है, और चैटबॉट्स हमें भाषा संबंधी सहायता प्रदान करते हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे हमारी मौलिक सोचने और निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो रही है?
शोधकर्ताओं का मानना है कि अगर हम बार-बार किसी बाहरी स्रोत पर निर्भर रहते हैं, तो हमारी संज्ञानात्मक क्षमता कमजोर हो सकती है. लगातार तकनीकी उपकरणों पर निर्भरता हमारी समस्या सुलझाने की स्वाभाविक प्रवृत्ति को बाधित कर सकती है.
ब्राउन और एलर्टन कहते हैं, 'अगर हम कठिन सवालों का हल खोजने की प्रक्रिया को छोड़कर सीधे उत्तर की ओर बढ़ेंगे, तो हम अपनी तर्क शक्ति और विश्लेषणात्मक क्षमता को कमजोर कर सकते हैं.'
शोध में यह भी पाया गया है कि एआई द्वारा सुझाए गए उत्तरों पर अत्यधिक भरोसा करने से हमारी आलोचनात्मक सोच प्रभावित हो सकती है. जब कोई एल्गोरिदम हमारे लिए निर्णय लेता है, तो हम उसके वैकल्पिक दृष्टिकोण पर विचार करना छोड़ देते हैं. इससे हमारी समस्या हल करने की स्वाभाविक क्षमता धीरे-धीरे घट सकती है.
विशेषज्ञों का सुझाव है कि हमें एआई का उपयोग बुद्धिमानी से करना चाहिए. तकनीक को एक सहायक उपकरण की तरह अपनाना चाहिए, न कि उस पर पूरी तरह निर्भर हो जाना चाहिए. मानसिक व्यायाम, गणना करने की क्षमता और स्वतंत्र सोच को बनाए रखना आवश्यक है ताकि हमारी बौद्धिक क्षमता प्रभावित न हो.
निष्कर्षएआई हमारी सोचने की क्षमता को कमजोर कर सकता है, लेकिन यह पूरी तरह हमारी अपनी आदतों पर निर्भर करता है. यदि हम तकनीक को केवल सहायक के रूप में उपयोग करें और अपने मस्तिष्क को सक्रिय रखें, तो हम अपनी बौद्धिक क्षमता को सुरक्षित रख सकते हैं.