Dehradun slums demolition: उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने शनिवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए देहरादून में जल निकायों और मौसमी नदियों से अतिक्रमण हटाने के लिए चल रहे अभियान पर तत्काल रोक लगाने का फैसला सुनाया. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अदालती आदेशों का दुरुपयोग कर मनमानी कार्रवाई की अनुमति नहीं दी जाएगी. मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र ने इस मामले में प्रशासन की कार्यशैली पर कड़ी टिप्पणी की और उचित प्रक्रिया का पालन करने का निर्देशदिया.
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार को जल निकायों की निगरानी के लिए सीसीटीवी कैमरे लगाने और मलबा डालने वालों के खिलाफ कार्रवाई के लिए पुलिस को निर्देश देने का आदेश दिया था. मामले की अगली सुनवाई 15 अप्रैल को निर्धारित थी. हालांकि, 5 अप्रैल को विकासनगर में प्रशासन ने झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों को नोटिस जारी कर तोड़फोड़ शुरू कर दी, जिसके बाद तत्काल सुनवाई की आवश्यकता पड़ी.
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, "यह सब अदालत को अपने हाथ बांधने के लिए मजबूर करने के लिए किया जा रहा है. हम अधिकारियों के इस आचरण की सराहना नहीं करेंगे.' उन्होंने प्रशासन से पूछा कि बिना सर्वेक्षण और नोटिस के यह कार्रवाई कैसे शुरू की गई. कोर्ट ने सवाल उठाया कि अगर ये संपत्तियां सरकारी योजनाओं के तहत आवंटित की गई थीं, तो विध्वंस को कैसे उचित ठहराया जा सकता है?
विकासनगर के निवासियों की याचिका
विकासनगर के ग्रामीणों ने शुक्रवार को हस्तक्षेप याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि 5 अप्रैल को उन्हें नोटिस मिला कि उनकी संपत्तियां "जल निकायों पर बने होने के कारण ध्वस्त की जाजाएंगी.' याचिका में दावा किया गया कि प्रशासन ने बिना सुनवाई का अवसर दिए और दस्तावेजों की जांच किए बिना कार्रवाई शुरू की, जो सर्वोच्च न्यायालय के मनोज टिबरेवाल आकाश मामले के फैसले का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया, "प्रतिवादी प्रशासन ने आवेदकों के खिलाफ बलपूर्वक कार्रवाई शुरू कर दी है जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के खिलाफ है.'
सरकारी योजनाओं के तहत आवंटित भूमि पर सवाल
कोर्ट को बताया गया कि यह भूमि इंदिरा आवास योजना और पीएम आवास योजना के तहत आवंटित की गई थी, जिसमें 100 से अधिक घर बनाए गए हैं. मुख्य न्यायाधीश ने सवाल किया, "अगर इन योजनाओं के तहत जगहें आवंटित की गई हैं, तो आप अपने विध्वंस को कैसे उचित ठहराते हैं? हम सरकारी खजाने पर बोझ नहीं डालेंगे; हम अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराएंगे और वे अपनी जेब से भुगतान करेंगे.' कोर्ट ने यह भी पूछा कि अगर यह भूमि नदी के किनारे थी, तो इसे आवंटित कैसे किया गया और इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
कोर्ट का अंतिम निर्देश
कोर्ट ने प्रशासन को 15 अप्रैल तक कोई बलपूर्वक कार्रवाई न करने का आदेश दिया. कोर्ट ने कहा, "हम एक कल्याणकारी राज्य हैं, आप मानते हैं कि उन्हें राज्य द्वारा साइट आवंटित की गई है, नदी के किनारे साइट किसने आवंटित की? इसके लिए कौन जिम्मेदार है?" कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना कोई कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी.