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नया नहीं है UP में पेपर लीक पर रोक का कानून, क्यों 34 साल से बार-बार हुआ लागू और हटता रहा नियम?

Ordinance On Paper Leaks: देश में परीक्षाओं को लेकर आई अनियमितता के बाद लगातार विरोध हो रहा है. छात्रों, अभ्यर्थियों के साथ ही शिक्षाविद और नेता भी इसके खिलाफ एक्शन की मांग कर रहे हैं. इस बीच देश के सबसे बड़े सूबे में इसे लेकर एक अध्यादेश लागू किया है. योगी सरकार द्वारा लाए गए इस नियम में कड़े प्रावधान हैं. हालांकि, इससे पहले भी प्रदेश में एक कानून है जो समय-समय पर लागू हुआ और हटता रहा है. आइये जानें इतिहास

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Courtesy: Social Media

Ordinance On Paper Leaks: NTA की NEET और NET परीक्षा को लेकर आई गड़बड़ी के बाद से देशभर में सख्त कानून की मांग हो रही है. इस बीच उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने अध्यादेश पारित किया है. हालांकि, ऐसा प्रदेश में कोई पहली बार नहीं हुआ है. पहले भी राज्य में इस संबंध में कानून आते और बदलते रहे हैं. आइये जानें राज्य में पेपर लीक को लेकर बने 1990 और 1998 के कानून में क्या प्रावधान है और ये 2024 का अध्यादेश इससे कितना अलग है. इसके साथ ही 90 के दशक में सरकार ने क्यों इस कानून को वापस ले लिया था?

उत्तर प्रदेश के CM योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता वाली कैबिनेट ने सार्वजनिक परीक्षाओं में पेपर लीक और अन्य अनियमितताओं को रोकने के लिए सख्त प्रावधानों वाले अध्यादेश को मंजूरी दी है. इससे पहले प्रदेश में उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षाएं (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 1998 लागू है.

क्या है पुराना कानून

1998 के पहले से ही एक कानून मौजूद है. इसके जरिए पेपर लीक और परीक्षाओं में अनुचित साधनों के उपयोग को रोकने के लिए नियम हैं. इसका नाम 'उत्तर प्रदेश सार्वजनिक परीक्षाएं (अनुचित साधनों की रोकथाम) अधिनियम, 1998' है. इसे भी उन दिनों की भाजपा सरकार ने लाया था. इससे पहले भाजपा की ही सरकार ने 1992 में भी एक कानून बनाया था जिसे 1993 में हटा दिया गया था.

दिलचस्प बात यह है कि 1992 में कल्याण सिंह की सरकार ने पेपर लीक विरोधी कानून पारित किया था. इसे 1993 में मुलायम सिंह के नेतृत्व वाली समाजवादी सरकार ने रद्द कर दिया था. हालांकि 1998 में दोबारा कल्याण सिंह सरकार ने मामूली संशोधनों के साथ फिर से लागू कर दिया. इस अधिनियम को भर्ती और परीक्षाओं से संबंधित पेपर लीक जैसे अपराधों के मामलों में लागू किया गया था.

1998 के अधिनियम में सार्वजनिक परीक्षा में अनुचित साधनों का उपयोग करने पर परीक्षार्थी को 3 महीने तक की जेल और 2,000 रुपये तक के जुर्माने या दोनों का प्रावधान था. इसके जरिए हाई स्कूल और इंटरमीडिएट, विश्वविद्यालय या उत्तर प्रदेश के किसी भी बोर्ड या निकाय द्वारा आयोजित परीक्षाओं कवर किया जाता है. इसके अलावा इसमें परीक्षार्थी के अलावा संगठित अपराध होने पर 1 वर्ष तक के कारावास या 5,000 रुपये का जुर्माने या दोनों हो सकता है.

इसलिए आया अध्यादेश

माना जा रहा है कि उत्तर प्रदेश का ये अध्यादेश विशेष रूप से इस साल पुलिस कांस्टेबल और समीक्षा अधिकारी/सहायक समीक्षा अधिकारी (RO/ARO) की भर्ती के लिए आयोजित परीक्षाओं के मद्देनजर लाया गया है. पहले सरकार को इन दोनों परीक्षाओं को रद्द करना पड़ा था.

अध्यादेश में क्या बदला

पिछले कानून को अधिक सख्त बनाने, सॉल्वर गिरोह जैसे अन्य पहलुओं जोड़ने के लिए योगी सरकार अध्यादेश लेकर आई है. इसमें सार्वजनिक परीक्षाओं में अनुचित प्रथाओं और पेपर लीक में शामिल लोगों पर उम्रकैद और 1 करोड़ रुपये तक के अधिकतम जुर्माने का प्रावधान किया गया है. पहले के कानून में बाहरी व्यक्तियों द्वारा पेपर लीक और सॉल्वर गिरोह जैसे कई तत्वों का उल्लेख नहीं था. इसमें उत्तर प्रदेश में होने वाली सभी परीक्षाएं शामिल होंगी.

नए कानून में जेल की सजा और जुर्माने के अलावा संपत्तियों को अटैच करने के प्रावधान भी शामिल हैं. इसमें नकली प्रश्नपत्रों के वितरण और नकली रोजगार वेबसाइटों को भी अपराध माना गया है. इसके तहत गड़बड़ी के कारण पड़े बोझ का इसमें शामिल लोगों से वसूला जाएगा. इस नियम में दोषी कंपनियों को हमेशा के लिए ब्लैकलिस्ट किया जाएगा, अपराधों की सुनवाई सत्र न्यायालयों में होगी, जमानत के लिए सख्त प्रावधान हैं.