कहते हैं मथुरा और वृंदावन के कण-कण में कृष्ण कन्हैया और राधा रानी का वास है. जहां पनपा है राधा कृष्ण का प्रेम, जहां की मिट्टी को लोग अपने माथे पर लगाकर खुद को धन्य मानते हैं. जिस ब्रज की रज में मिल जाने की कामना लेकर ऋषि मुनियों ने कड़ी तपस्या की. आज उसी रज का व्यापार हो रहा है. यानी जिस वृंदावन के रज पर लोग चप्पल पहनकर नहीं चलते ये सोचकर कि ये भगवान कृष्ण की नगरी है. उस मिट्टी की आज ऑनलाइन बिक्री हो रही. इससे न सिर्फ साधु-संत बल्कि ब्राह्मण समाज का भी गुस्सा फूट पड़ा है.
वृंदावन की धूल अब ऑनलाइन बेची जा रही है.अमेजन समेत कई प्रमुख ऑनलाइन स्टोर्स पर वृंदावन की रज 1200 से 3500 रुपये प्रति किलो बेची जा रही है.
वृंदावन में छोटे-बड़े 800 से ज्यादा ऐसे कारखाने हैं, जो कान्हा से जुड़ी वस्तुओं का निर्माण करते हैं. जिसमें ब्रज रज, कंठी माला, धूपबत्ती, पोशाक, अंगार का सामान, इत्र, चंदन टीका, जप माला, मूर्ति, तस्वीर, गोबर के उपले, तुलसी माला, हवन सामाग्री आदि शामिल है. इसी कड़ी में अब वृंदावन की धूल भी बेची जा रही है.
इससे पहले साल 2021 में गिरिराज जी की शिला ऑनलाइन बेचे जाने का प्रयास हुआ था. तब वहां के मूल निवासियों ने गोवर्धन थाने में मुकदमा दर्ज कराया था. साथ ही वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने भी इसका विरोध करते हुए अनिष्ट होने की चेतावनी दी थी. वहीं, इस बाबत अध्यात्म रक्षा मंच के संस्थापक बिहारी लाल वशिष्ठ ने कहा कि चैतन्य महाप्रभु बल्लभाचार्य ने कहा था कि श्रीहरिवंश आचार्य रामव्यास ने ब्रजरज में लोटपोट होकर अपनी भक्ति की आराधना व्यख्त की. बांके बिहारी मंदिर के सेवयात हरिदास संप्रदाय के अनुयायी आनंद बल्लभ गोस्वामी और प्रदीप गोस्वामी बिंदू ने कहा कि रज को बेचने वालों के प्रति कठोर कार्रवाई होनी चाहिए.
चतु: संप्रदाय के महंत फूलडोल बिहारी दास ने कहा, 'भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने भी ब्रज की रज में आने की इच्छा जताई थी. इस मिट्टी में लोटने से पापों से मुक्ति मिलती है. इसे बेचा जाना महापाप है. सरकार को इस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है.' बता दें कि वृंदावन राधा रानी का खास स्थान है. साथ ही, विष्णु पुराण में भी वृंदावन में कृष्ण की रास लीला का वर्णन मिलता है.