Uttar Pradesh Assembly Bypolls: हाल के लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन ने यूपी में शानदार जीत हासिल की. दोनों पार्टियों ने 80 लोकसभा सीटों में से 43 पर कब्जा जमा लिया. अब उत्तर प्रदेश में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने हैं, लेकिन दोनों ही पार्टियों के बीच सीट बंटवारे को लेकर पेंच फंसता दिख रहा है. रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि दोनों पार्टियों के बीच 10 में से 3 सीटों पर बातचीत अटक गई है.
कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने बताया कि दोनों पार्टियों ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मीरापुर विधानसभा सीट के साथ-साथ राज्य के पूर्वी हिस्से की फूलपुर और मझवां सीट पर भी दावा किया है. कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि पार्टी ने सभी 10 सीटों पर तैयारी शुरू कर दी है, लेकिन वह उन पांच सीटों (करहल, कुंदरकी, सीसामऊ, मिल्कीपुर और कठेरी) पर ज्यादा जोर नहीं दे रही है, जिन्हें सपा ने 2022 में जीता था. सूत्रों ने कहा कि सपा कांग्रेस के लिए गाजियाबाद और खैर छोड़ने को तैयार है, जिसका मतलब है कि उपरोक्त तीन सीटें विवाद का विषय बनी हुई हैं.
उपचुनाव वाली 10 सीटों में मीरापुर, गाजियाबाद, खैर, कुंदरकी, करहल, फूलपुर, शीशमऊ, मिल्कीपुर, कठेरी और मझवां शामिल हैं. इनमें से पांच पर 2022 में समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की थी. भाजपा ने तीन, राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) और निषाद पार्टी ने एक-एक सीट जीती थी.
कांग्रेस के एक नेता ने दावा किया कि समाजवादी पार्टी सभी अल्पसंख्यक बहुल सीटों को अपने पास रखना चाहती है. मीरापुर में अल्पसंख्यकों की अच्छी खासी आबादी है, लेकिन दलित भी हैं. उन्होंने कहा कि यहां उपचुनाव जीतना 2027 के विधानसभा चुनावों में किसी भी पार्टी के लिए फायदेमंद साबित होगा. मीरापुर में मौजूदा आरएलडी विधायक चंदन चौहान के बिजनौर लोकसभा सीट जीतने के बाद उपचुनाव की जरूरत पड़ी है.
मुजफ्फरनगर में सपा के एक जिला स्तरीय नेता ने इस दावे का खंडन करते हुए कहा कि पार्टी ने उन क्षेत्रों में बूथ स्तरीय समितियां पहले ही गठित कर दी हैं, जहां लोकसभा चुनावों में उसका प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा. नेता ने कहा कि उपचुनाव की तारीखें घोषित होते ही हम उम्मीदवारों की घोषणा करने के लिए तैयार हैं. साथ ही, चौहान ने 2022 में सपा के साथ गठबंधन करते हुए सीट जीती, जिससे उन्हें अल्पसंख्यक और जाट वोटों को अपने पक्ष में करने में मदद मिली. वास्तव में, वे सपा के समर्थन के कारण जीते. कांग्रेस के पूर्व बसपा विधायक जमील अहमद कासमी ने 2022 के विधानसभा चुनावों में मात्र 1,258 वोट हासिल किए थे.
दोनों पार्टियां लोकसभा चुनावों के बाद बदले समीकरणों में अपनी संभावनाओं को लेकर उत्साहित हैं, जहां माना जाता है कि अल्पसंख्यकों और दलितों ने उनके पक्ष में मतदान किया है.
फूलपुर में उपचुनाव की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मौजूदा बीजेपी विधायक प्रवीण सिंह पटेल ने हाल ही में लोकसभा चुनाव जीता है. यहां सपा नेता हाल के चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन का हवाला देकर दावा पेश कर रहे हैं, जबकि कांग्रेस यहां अपने वोट बैंक को फिर से हासिल करने के लिए इस सीट पर नजर गड़ाए हुए है.
2012 में आखिरी बार सीट जीतने वाली सपा ने 2017 और 2022 के विधानसभा चुनावों में पटेल को कड़ी टक्कर दी, जिसमें उसके उम्मीदवार एमएम सिद्दीकी 2022 में 2,700 वोटों के मामूली अंतर से हार गए. सपा के एक नेता ने कहा कि कांग्रेस महत्वाकांक्षी हो रही है. गठबंधन पर फैसला दोनों दलों के राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से लिया जाएगा. हालांकि, कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि अल्पसंख्यक समुदाय मजबूती से उसके साथ है और इस बार फूलपुर में पार्टी की जीत की संभावनाएं सपा से अधिक हैं.
दलितों की अच्छी खासी आबादी वाली मझवां सीट पर 2022 में निषाद पार्टी के विनोद कुमार बिंद ने जीत दर्ज की थी. विधायक के भाजपा में शामिल होने और भदोही लोकसभा सीट जीतने के बाद यहां उपचुनाव की जरूरत पड़ी. कांग्रेस और सपा इस सीट पर दावा ठोक रही हैं और बसपा के वोट बैंक पर नजर गड़ाए हुए हैं.
2022 के विधानसभा चुनाव के प्रदर्शन के अलावा, जहां उसका उम्मीदवार उपविजेता रहा, सपा का दावा है कि पूर्व विधायक रमेश चंद बिंद के पार्टी में शामिल होने से मझवां उनके लिए एक 'सुरक्षित सीट' बन गई है. दूसरी ओर, कांग्रेस का दावा है कि दलित वोट बैंक मजबूती से उसके पीछे है और पार्टी के पास सीट जीतने का बेहतर मौका है, क्योंकि उसके पास बहुसंख्यक मतदाताओं को लुभाने की क्षमता है, जिसमें दलित, ब्राह्मण और बिंद शामिल हैं, जिनकी संख्या 50,000-50000 है.