पुराने 'योगी की वापसी'; यूपी भाजपा में दरार के बीच कैसे CM आदित्यनाथ कर रहे अपनी रणनीति में बदलाव?

UP Politics: 2022 में सत्ता में लौटने के बाद योगी आदित्यनाथ अपनी 'हिंदुत्व नेता' की छवि को नरम करते दिखे. हालांकि उन्होंने हाल के दिनों में 'लव जिहाद' विरोधी विधेयक को कड़ा किया, सनातन धर्म को सुरक्षित करने के बारे में बात की और कांवड़ यात्रा के दौरान खाने-पीने के स्टॉल पर नेमप्लेट लगाने का आदेश दिया. इनसे संकेत मिलता है कि योगी आदित्यनाथ अपने पुराने छवि में लौट रहे हैं.

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UP Politics: उत्तर प्रदेश में 2.0 की जब शुरुआत हुई थी, तब मुख्यमंत्री के रूप में योगी आदित्यनाथ अपनी हिंदुत्ववादी नेता की छवि को लेकर बेहद सतर्क दिखे थे. लेकिन हाल के हफ्तों में अपने कुछ फैसलों से हिंदुत्व के प्रति उनका कड़ा रुख सामने आया है. या कहे कि वे अपने पिछली हिंदुत्व वाली छवि में ही दिख रहे हैं. ये सब तब हो रहा है, जब कुछ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में करारी हार का सामना करना पड़ा था.

सबसे पहले पिछले महीने आदित्यनाथ ने लखनऊ की दो हिंदू बहुल कॉलोनियों (पंत नगर और इंद्रप्रस्थ नगर) के निवासियों को आश्वासन दिया कि उनके घर नहीं तोड़े जाएंगे. निवासियों में डर था क्योंकि सिंचाई विभाग ने घरों को बाढ़ क्षेत्र में चिह्नित किया था. 20 जून को, लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) ने लखनऊ के अकबर नगर इलाके में 24.5 एकड़ में 1,169 घरों और 101 व्यावसायिक प्रतिष्ठानों समेत 1,800 संरचनाओं को ध्वस्त करने का एक महीने लंबा अभियान पूरा किया, यह घोषणा करने के बाद कि उन्होंने कुकरैल नदी के किनारे बाढ़ क्षेत्र में अवैध रूप से अतिक्रमण किया था.

अगला बड़ा उदाहरण पुलिस की ओर से कांवड़ यात्रा मार्ग पर सड़क किनारे विक्रेताओं और दुकानदारों को उनके प्रतिष्ठानों के बाहर अपना नाम प्रदर्शित करने का आदेश पारित करना था. पिछले महीने मुजफ्फरनगर जिले में पुलिस की ओर से पहली बार घोषित किए गए इस निर्देश पर मुसलमानों के खिलाफ निर्देशित होने का आरोप लगाया गया था. हालांकि, मुजफ्फरनगर के सीनियर एसपी (एसएसपी) ने दावा किया कि इससे टकराव को रोका जा सकेगा. हंगामे के बीच, राज्य प्रशासन अपने फैसले पर अड़ा रहा और एक हफ्ते बाद ये निर्देश राज्य के अन्य हिस्सों पर भी लागू कर दिया गया, जहां से कांवड़ यात्रा गुजरनी थी.

इसके बाद यानी जुलाई के अंत में, राज्य सरकार ने धर्मांतरण विरोधी कानून में संशोधन करने के लिए एक विधेयक पेश किया, जिससे उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम, 2021 को और अधिक कठोर बना दिया गया. यूपी विधानसभा ने 30 जुलाई को संशोधन विधेयक पारित किया, जिसमें फिर से 'लव जिहाद' को खत्म करने के अपने इरादे को जताया गया. यह शब्द हिंदू दक्षिणपंथी समूहों की ओर से कथित तौर पर एक साजिश को दिया गया है, जिसमें भाजपा नेताओं सहित मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को शादी का लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं.

मुख्यमंत्री ने एक बार फिर एंटी रोमियो स्क्वॉड को एक्टिव करने का निर्देश

पिछले हफ़्ते, अपराध के प्रति अपनी सख़्त छवि के अनुरूप, सीएम ने पुलिस अधिकारियों को एंटी-रोमियो स्क्वॉड को फिर से एक्टिव करने का निर्देश दिया, जिसे 2017 में उनके राज्य की कमान संभालने के बाद पहली बार लॉन्च किया गया था. आदित्यनाथ के सत्ता में लौटने के बाद 2022 में एंटी रोमियो स्क्वाड को फिर से एक्टिव किया गया था, लेकिन कुछ समय बाद ही इसे रोक दिया गया. इस दस्ते को सड़कों पर महिलाओं और लड़कियों के यौन उत्पीड़न पर नकेल कसने के लिए शुरू किया गया था.

पिछले हफ़्ते एक कार्यक्रम में राम मंदिर आंदोलन के ध्वजवाहक परमहंस रामचंद्र दास की प्रतिमा का अनावरण किया गया. इस कार्यक्रम में आदित्यनाथ भी शामिल हुए थे. उन्होंने सनातन धर्म को ख़तरे में डालने वाले संकटों के खिलाफ एकजुट होने की अपील की. ​​राम मंदिर निर्माण का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि ये अंतिम मंज़िल नहीं बल्कि एक मील का पत्थर है और सनातन धर्म को सुरक्षित करने का अभियान जारी रहना चाहिए.

पिछले सप्ताहांत आदित्यनाथ ने बांग्लादेश संकट और पड़ोसी देशों में हिंदुओं की स्थिति पर भी बात की. उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष वोट बैंक की राजनीति के कारण इस बारे में चुप है. बांग्लादेश के हिंदुओं की रक्षा करना और संकट के समय उनका समर्थन करना हमारा कर्तव्य है और हम हमेशा उनके साथ खड़े रहेंगे. चाहे परिस्थितियां कैसी भी हों, हमारे मूल्य अटल हैं. बांग्लादेश में हिंदू होना कोई गलती नहीं है उन्होंने कहा कि ये एक आशीर्वाद है.

योगी आदित्यनाथ की छवि में कैसे-कैसे आए बदलाव?

योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक यात्रा तब शुरू हुई जब उनके गुरु महंत अवैद्यनाथ ने अपनी राजनीतिक और धार्मिक जिम्मेदारियां उन्हें सौंप दीं. इसके बाद योगी आदित्यनाथ 26 साल की उम्र में 1998 में हुए लोकसभा चुनाव में गोरखपुर के सांसद चुने गए. 

इसके तुरंत बाद, महत्वपूर्ण गोरखनाथ मठ के प्रमुख युवा महंत ने एक मजबूत हिंदुत्व नेता के रूप में अपनी छवि को चमकाया, क्योंकि 2002 में उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी नामक एक संगठन बनाया. आदित्यनाथ के पैदल सैनिकों का ये संगठन अगले पांच वर्षों में पूर्वी यूपी में फैल गया और गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज , संत कबीर नगर, बस्ती, सिद्धार्थनगर, बलरामपुर, गोंडा, फैजाबाद, मऊ, आजमगढ़, गाजीपुर, जौनपुर और बलिया जैसे जिलों में इसका काफी प्रभाव था. 2011 की शुरुआत तक, संगठन ने पूर्वी यूपी से परे जिलों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई और मध्य और पश्चिमी यूपी इकाइयां बनाईं.

वाहिनी ने गौरक्षकों के रूप में अपनी पहचान बनाई और दूसरे धर्म के लोगों के साथ टकराव में व्यक्तियों या हिंदू समूहों का साथ दिया. इसके कई पदाधिकारियों पर हिंसा में शामिल होने के लिए आपराधिक मामले दर्ज किए गए. यहां तक ​​कि आदित्यनाथ के खिलाफ भी मामले दर्ज किए गए. 2005 में, अपने भड़काऊ भाषणों के लिए मशहूर आदित्यनाथ ने सांप्रदायिक दंगों के बाद मऊ की ओर रुख किया, लेकिन उन्हें रोक दिया गया. जनवरी 2007 में एक हिंदू युवक की मौत के बाद गोरखपुर में सांप्रदायिक दंगे भड़कने के बाद दर्ज मामलों में उनका नाम शामिल था. बाद में सरकार ने मामला वापस ले लिया.

2017 में सीएम बने, उदारवादी रुख अपनाने की कोशिश की

2017 में मुख्यमंत्री बनने के बाद आदित्यनाथ ने ज़्यादा उदारवादी रुख अपनाने की कोशिश की. सबसे पहले उन्होंने हिंदू युवा वाहिनी को भंग कर दिया. लेकिन उन्होंने इसे हिंदुत्व के अनुयायियों तक पहुंच बनाने के साथ संतुलित किया. उन्होंने कांवड़ यात्रा पर तीर्थयात्रियों पर हेलीकॉप्टर से फूल बरसाने की परंपरा शुरू की. तब से यह परंपरा हर साल जारी है. आदित्यनाथ ने अवैध बूचड़खानों के खिलाफ़ भी कदम उठाया और उन्हें बंद करने के लिए मजबूर किया.

2022 में सत्ता में लौटने के बाद, आदित्यनाथ ने अपने रुख को और भी नरम कर दिया. उनका अपराध-विरोधी, बुलडोजर वाला अभियान अब जाने-माने गैंगस्टरों और उनके सहयोगियों या हिंसा भड़काने के आरोपी दबंगों के खिलाफ़ है. सीएम ने अयोध्या, वाराणसी और मथुरा जैसे हिंदू तीर्थ स्थलों के विकास पर भी ज़्यादा ध्यान केंद्रित किया और वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद विवाद और मथुरा में कृष्णजन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद से जुड़े अदालती मामलों पर जब माहौल गरमाया, तब भी उन्होंने बयानबाज़ी से परहेज़ किया.

इस साल लोकसभा चुनावों के दौरान, जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की बुलडोजर कार्रवाई की सीनियर भाजपा नेताओं की ओर से खूब चर्चा हुई थी, जिन्होंने अपराध के प्रति आदित्यनाथ सरकार के सख्त रुख की सराहना की थी, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने स्वयं इस पर ज्यादा जोर नहीं दिया. लेकिन अब, संसदीय चुनावों में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद पार्टी में उनके प्रतिद्वंद्वियों को अपनी आवाज मिल गई है और ऐसा लगता है कि आदित्यनाथ पुराने ढर्रे पर लौट रहे हैं.