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UP के शख्स ने खरीदी डॉन दाऊद इब्राहिम की संपत्ति, जानें अंडरवर्ल्ड के खिलाफ कैसे 23 साल तक लड़ी लड़ाई

UP man buys Dawood Ibrahim Mumbai shop: हेमंत जैन की यह कहानी केवल एक संपत्ति के संघर्ष की नहीं, बल्कि एक ऐसी मानसिकता की भी है, जो दाऊद इब्राहिम जैसे अपराधी के खिलाफ खड़े होने का साहस रखती है. उनका कहना है, "मेरे लिए यह संपत्ति खरीदने का मुख्य कारण दाऊद इब्राहिम की ताकत को चुनौती देना था."

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Edited By: Gyanendra Tiwari
UP man buys Dawood Ibrahim Mumbai shop fight 23 year
Courtesy: Social Media

UP man buys Dawood Ibrahim Mumbai shop: जब उत्तर प्रदेश के हेमंत जैन ने मुंबई के नागपाड़ा इलाके में एक 144 वर्ग फुट की दुकान पर अपनी नजर डाली, तो उन्होंने इसे केवल एक संपत्ति के रूप में नहीं देखा, बल्कि यह उनके लिए एक ऐसा अवसर था, जिससे वह अंडरवर्ल्ड की छाया को चुनौती दे सकते थे. हेमंत जैन ने बताया, "मैंने यह संपत्ति उस समय बोली में खरीदी, जब मैंने अखबार में पढ़ा कि दाऊद इब्राहिम की संपत्तियां खरीदने वालों से बच रही थीं."

हेमंत जैन ने सितंबर 2001 में आयकर विभाग द्वारा आयोजित नीलामी में यह संपत्ति 2 लाख रुपये में खरीदी थी. लेकिन इस खरीदारी का जश्न ज्यादा समय तक नहीं रहा. इसके बाद उन्हें यह बताया गया कि केंद्र सरकार की संपत्तियों के हस्तांतरण पर रोक है, लेकिन बाद में यह खुलासा हुआ कि ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं था. इसके बाद प्रशासनिक अड़चनें बढ़ती चली गईं.

कानूनी लफड़े में फंस गई जमीन

इस संपत्ति के मालिकाना हक को स्थानांतरित करने के लिए जैन को प्रशासनिक दफ्तरों की ओर से लगातार अड़चनों का सामना करना पड़ा. आयकर विभाग ने यह आरोप लगाया कि "मूल फाइलें गायब हो गई हैं", और इस वजह से संपत्ति का हस्तांतरण रुक गया. जैन ने प्रधानमंत्री कार्यालय को कई बार पत्र लिखा, लेकिन कोई समाधान नहीं मिला.

अधिकारियों ने मौजूदा रेट के हिसाब से मांगे पैसे

साल 2017 तक यह संपत्ति की फाइल पूरी तरह गायब हो गई थी. इसके बाद जैन को बताया गया कि उन्हें इस संपत्ति के मौजूदा बाजार मूल्य के आधार पर स्टांप ड्यूटी चुकानी होगी, जो अब 23 लाख रुपये के पार हो चुकी थी. इसके अलावा, पंजीकरण शुल्क और दंड भी बढ़ गए थे. जैन ने तर्क दिया कि चूंकि संपत्ति नीलामी में खरीदी गई थी, स्टांप ड्यूटी बाजार मूल्य के आधार पर नहीं ली जानी चाहिए थी, लेकिन फिर भी उन्हें 1.5 लाख रुपये की स्टांप ड्यूटी और जुर्माना चुकाना पड़ा.

इतनी सारी परेशानियों के बावजूद जैन ने हार नहीं मानी. उन्होंने 19 दिसंबर 2024 को यह संपत्ति अपने नाम पर पंजीकृत करवाई. जैन का कहना था, "अब यह संपत्ति मेरे नाम है, और अब मैं इसे पूरी तरह से कब्जे में लूंगा."

दाऊद के गुर्गों का था दुकान पर कब्जा

हालांकि जैन की जीत अधूरी थी क्योंकि दुकान में अभी भी दाऊद के कथित गुर्गे बैठे थे, जिन्होंने इसे एक लेथ मशीन वर्कशॉप बना लिया था. जैन के लिए यह एक नई चुनौती थी, लेकिन उन्होंने इसका सामना करने का संकल्प लिया है. उन्होंने कहा, "अधिकारियों ने मुझसे कहा था कि इस संपत्ति को भूल जाओ और शांति से रहो. लेकिन हम गांववाले डर नहीं जानते."

दाऊद के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत

यह दुकान, दाऊद इब्राहिम के साम्राज्य के खिलाफ सरकार की कार्रवाई का हिस्सा थी. यह संपत्ति स्मगलर्स और फॉरेन एक्सचेंज मनीपुलेटर्स (फॉरफिचर ऑफ प्रॉपर्टी) एक्ट (SAFEMA) के तहत जब्त की गई थी. जैन और उनके बड़े भाई पियूष, दाऊद के खिलाफ इस तरह की संपत्ति खरीदने वाले पहले लोग थे, और उनके इस कदम ने अन्य लोगों को भी प्रोत्साहित किया.

जैन को मिला सियासी समर्थन

हेमंत जैन की इस साहसिक कार्य को न केवल स्थानीय लोगों का समर्थन मिला, बल्कि राजनीति में कई नेताओं ने भी उनकी सराहना की. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामजीलाल सुमन और पूर्व विधायक अजीम भाई ने राज्य सरकार को पत्र लिखकर जैन को सम्मानित करने की सिफारिश की.