Supreme Court News: उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगातार झटका लगा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी गैंगस्टर और एंटी-सोशल एक्ट, 1986 की संवैधानिक वैधता की जांच करने का फैसला लिया है. यह कदम 16 दिन पहले किए गए ऐतिहासिक फैसले के बाद आया है, जिसमें कोर्ट ने अवैध बुलडोजर ध्वस्तिकरण पर रोक लगाते हुए कड़े दिशा-निर्देश तय किए थे. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने यूपी सरकार को नोटिस जारी किया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि कोर्ट इस विवादित कानून की गहरी जांच करेगा.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, यह घटनाक्रम उसी पीठ के पहले के फैसले के बाद हुआ है, जिसमें कथित अपराधियों के खिलाफ मनमाने ढंग से बुलडोजर चलाने पर रोक लगाई गई थी. कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यूपी गैंगस्टर एक्ट की जांच करने की अदालत की इच्छा जवाबदेही सुनिश्चित करने और व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा करने के उसके व्यापक प्रयास को दर्शाती है.
क्या है यूपी गैंगस्टर एक्ट?
यह एक्ट पुलिस को व्यापक शक्तियां प्रदान करता है, जिससे पुलिस को आरोपी की संपत्तियों को बिना न्यायिक अनुमति के जब्त करने और मामले दर्ज करने का अधिकार मिलता है. आलोचक इस बात पर चिंता जताते हैं कि इस एक्ट के तहत पुलिस के पास इतनी बड़ी शक्ति होना नागरिकों के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है. जिसके चलते इसका दुरुपयोग भी हो सकता है. इस दौरान एडवोकेट अंसार अहमद चौधरी द्वारा दायर याचिका में इस एक्ट के कुछ खास प्रावधानों पर सवाल उठाए गए हैं.
जानिए किस एक्ट को लेकर एडवोकेट अंसार अहमद चौधरी ने उठाए सवाल?
1. धारा 3, 12 और 14 - ये धाराएं मामले की पंजीकरण, संपत्ति जब्ती, जांच और ट्रायल को नियंत्रित करती हैं.
2. नियम 16(3), 22, 35, 37(3), और 40 - नियम 22 के तहत एक मात्र कृत्य या चूक को FIR के लिए उचित ठहराया जा सकता है, बिना आरोपी के आपराधिक इतिहास के विचार किए.
3. याचिका का कहना है कि पहले से दर्ज एक अपराध पर फिर से FIR दर्ज करना, संविधान के अनुच्छेद 20(2) का उल्लंघन करता है, जो डबल जेओपर्डी से सुरक्षा प्रदान करता है.
संवैधानिक अधिकारों का हो रहा उल्लंघन
इस याचिका में यह भी कहा गया है कि यह एक्ट संविधान के कई अधिकारों का उल्लंघन करता है. जिसमें अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता, अनुच्छेद 19 कुछ स्वतंत्रताओं की सुरक्षा करना शामिल है. इसके साथ ही अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है. इसके अलावा, याचिका में यह भी कहा गया है कि पुलिस द्वारा संपत्तियों की अव्यावसायिक जब्ती और जज और जूरी के रूप में काम करना, उचित प्रक्रिया के अधिकार का उल्लंघन है.
जानें आगे क्या होगा?
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस भेजा है और उम्मीद है कि कोर्ट कानून प्रवर्तन के सशक्तिकरण और संवैधानिक सुरक्षा उपायों के बीच संतुलन पर विचार करेगा. यह मामला न केवल उत्तर प्रदेश, बल्कि भारत भर में ऐसे समान कानूनों पर भी प्रभाव डाल सकता है, जिससे राज्य की शक्तियों की सीमाओं को दोबारा तय किया जा सके. इस न्यायिक हस्तक्षेप से यह साफ हो सकता है कि ऐसे कानूनों का मसौदा और कार्यान्वयन किस दिशा में जाएगा और सुप्रीम कोर्ट अपनी भूमिका को संविधान की संप्रभुता और न्याय की रक्षा में एक महत्वपूर्ण निर्णायक के रूप में फिर से स्थापित करेगा.