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'मैं अब थक गई हूं, यह मेरी आखिरी लड़ाई होगी', वो नारा जिसने दम पर सीसामऊ जीत गईं जेल में बंद इरफान सोलंकी की पत्नी

नसीम सोलंकी ने चुनावी रैलियों में भावुक होकर कहा था, 'मैं अब थक गई हूं, यह मेरी आखिरी लड़ाई होगी.' यह बयान उनके पिछले दो वर्षों के संघर्ष का आईना था, जब वह अपने पति की गिरफ्तारी और केसों से जुड़ी समस्याओं से जूझ रही थीं. जेल में बंद होने के बावजूद, इरफान के समर्थक नसीम को समर्थन देने के लिए एकजुट हो गए. उनकी यह लड़ाई न केवल राजनीतिक थी, बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक संघर्ष का भी प्रतीक बन गई.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
SP Naseem Solanki

Sishamau News: उत्तर प्रदेश के सीसामऊ विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव में समाजवादी पार्टी (SP) की उम्मीदवार नसीम सोलंकी ने शानदार जीत हासिल की. नसीम, जो अपने पति इरफान सोलंकी की जगह पर चुनावी मैदान में उतरीं, ने भाजपा के उम्मीदवार सुरेश अवस्थी को 8,564 मतों से हराया. नसीम की यह जीत उनके संघर्ष और समर्पण का प्रतीक बन गई है. इस चुनावी अभियान के दौरान उनका एक नारा "मैं अब थक गई हूं, यह मेरी आखिरी लड़ाई होगी" राजनीति की गलियों में चर्चा का विषय बन गया था.

 'सहानुभूति' फैक्टर ने दिलाई जीत

नसीम सोलंकी की जीत में उनके पति, इरफान सोलंकी की राजनीतिक धरोहर और 'सहानुभूति' का अहम योगदान रहा. इरफान, जो सीसामऊ के विधायक थे, जून में एक दंगों के मामले में दोषी पाए गए थे, जिसके बाद उनकी विधायक सदस्यता रद्द कर दी गई और वह दिसंबर 2022 से जेल में बंद हैं. इरफान ने 2012 से इस सीट पर लगातार जीत हासिल की थी, और उनके समर्थकों का उनके प्रति मजबूत विश्वास था.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नसीम की जीत में इरफान का उनका समर्थन और मुसलमानों और अन्य समुदायों के बीच उनकी पकड़ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. विशेष रूप से, इस सीट पर मुस्लिम वोटरों की संख्या 1.1 लाख के करीब है, जिनमें से अधिकांश ने नसीम के पक्ष में वोट दिया.

मैं अब थक चुकी हूं, यह मेरी आखिरी लड़ाई है
नसीम सोलंकी ने चुनावी रैलियों में भावुक होकर कहा था, "मैं अब थक गई हूं, यह मेरी आखिरी लड़ाई होगी." यह बयान उनके पिछले दो वर्षों के संघर्ष का आईना था, जब वह अपने पति की गिरफ्तारी और केसों से जुड़ी समस्याओं से जूझ रही थीं. जेल में बंद होने के बावजूद, इरफान के समर्थक नसीम को समर्थन देने के लिए एकजुट हो गए. उनकी यह लड़ाई न केवल राजनीतिक थी, बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक संघर्ष का भी प्रतीक बन गई.

समाजवादी पार्टी ने नसीम को टिकट देकर उनके संघर्ष को राजनीति में उतारा, और इस फैसले को सही साबित करते हुए उन्होंने शानदार जीत हासिल की. सीसामऊ की सीट मुस्लिम-बहुल है, लेकिन अन्य जातियों जैसे ब्राह्मण, दलित, और अन्य पिछड़े वर्गों के वोट भी महत्वपूर्ण थे. नसीम ने इन समुदायों से भी समर्थन जुटाया, जिससे उनकी जीत सुनिश्चित हुई.