इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मथुरा की शाही ईदगाह बनाम कृष्ण जन्मभूमि विवाद में अपना फैसला सुना दिया है. अदालत ने मामलों की सुनवाई करने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. शाही ईदगाह मस्जिद कमेटी की आपत्तियों को खारिज कर दिया है. मुस्लिम पक्ष ने हिंदू श्रद्धालुओं की याचिका को चुनौती दी थी. हाई कोर्ट ने कहा है कि वह हिंदू पक्ष की सभी 18 याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. इस मामले में अगली सुनवाई 12 अगस्त को होगी.
जस्टिस मयंक कुमार जैन की बेंच ने इन सभी 18 मामलों को सुनवाई के योग्य माना है और कहा है कि इन पर मेरिट के आधार पर सुनवाई की जाएगी. जस्टिस मयंक कुमार जैन ने इस मामले पर सुनवाई करने के बाद 6 जून को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. दरअसल, शाही ईदगाह मस्जिद ने हाई कोर्ट में उन याचिकाओं को चुनौती दी थी जिनमें इस मामले पर सुनवाई करने की अपील की गई थी.
#WATCH | Prayagraj: On Allahabad HC rejects Muslim side's plea challenging maintainability of Hindu suits, Advocate Vishnu Shankar Jain says, "Today Allahabad High Court has rejected the application of order 7 rule 11 filed by Shahi Eidgah Masjid and held that all these 18 suits… pic.twitter.com/3kklt5MexE
— ANI (@ANI) August 1, 2024
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि हिंदू पक्ष की ओर से दायर की गई याचिकाएं लिमिटेशन एक्ट या प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत प्रतिबंधित नहीं हैं, ऐसे में उन पर सुनवाई की जाज सकती है. इस मामले में शाही ईदगाह पक्ष का तर्क था कि ये याचिकाएं प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट, 1991, लिमिटेशन एक्ट 1963 और स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट 1963 का उल्लंघन करती हैं. वहीं, हिंदू पक्ष की आपत्ति थी कि सरकारी रिकॉर्ड में कोई भी संपत्ति शाही ईदगाह के नाम पर दर्ज नहीं है और उसने इस पर अवैध कब्जा किया हुआ है. हिंदू पक्ष का यह भी कहना था कि अगर यह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है तो उसे यह बताना चाहिए उसे यह संपत्ति किसने दान की थी.
मौजूदा समय में मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर के ठीक बगल में शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है. 11 एकड़ में मंदिर है और 2.37 एकड़ हिस्सा शाही ईदगाह मस्जिद के कब्जे में है. यह पूरा विवाद इसी 13.37 एकड़ जमीन के एकछत्र कब्जे को लेकर है. हिंदू पक्ष का दावा है यह पूरा परिसर श्रीकृष्ण जन्मभूमि है और मंदिर तोड़कर ही यहां मस्जिद बनाई गई थी. यह विवाद लगभग 350 साल पुराना है. कहा जाता है कि मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल में साल 1670 में श्रीकृष्ण जन्म स्थली को तोड़कर ह मस्जिद बनाई गई.
आगे चलकर इस पर मराठाओं ने मंदिर बनाया और इसका नाम केशवदेव मंदिर हो गया. फिर 1815 में अंग्रेजों ने यहां की जमीन नीलाम की तो उसे काशी के राजा ने खरीद तो लिया लेकिन मंदिर नहीं बनवा पाए और जमीन खाली पड़ी रही. 1944 में यह जमीन जुगल किशोर बिड़ला ने खरीदी. 1951 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट बना और उसी ट्रस्ट को यह जमीन दे दी गई. ट्रस्ट के पैसों से ही 1953 से 1958 के बीच यह मंदिर बना. 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान नाम की नई संस्था बनी जिसने 1968 में मुस्लिम पक्ष से समझौता किया. इसी समझौते को लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया.
समझौता था कि मंदिर और मस्जिद दोनों इसी जमीन पर रहेंगे. हालांकि, अब श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट का कहना है कि वह इस समझौते को नहीं मानता क्योंकि समझौता करने वाली संस्था का जन्मभूमि पर कोई कानूनी दावा नहीं है. अब हिंदू पक्ष ने कोर्ट में अपील की है कि इस परिसर का सर्वे कराया जाए और यहां मुस्लिमों के प्रवेश पर रोक लगाई जाए.