Milkipur By Election Chandrabhan Paswan Vs Ajit Prasad: उत्तर प्रदेश के मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र में 5 फरवरी को उपचुनाव होने जा रहे हैं, और इस उपचुनाव को भाजपा और समाजवादी पार्टी (SP) के बीच एक महत्वपूर्ण मुकाबला माना जा रहा है. भाजपा ने इस उपचुनाव में अपनी ओर से चंद्रभान पासवान को उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतारा है. यह उपचुनाव अयोध्या के पास स्थित मिल्कीपुर क्षेत्र से होने वाला है, जो पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए एक बड़ी हार का कारण बना था. सपा के अजित प्रसाद को अब उन्ही के जाति के चंद्रभान बीजेपी की ओर से उन्हें ही टक्कर देते नजर आएंगे.
चंद्रभान पासवान एक पेशेवर वकील हैं और वे अयोध्या जिले के पारसौली गांव से ताल्लुक रखते हैं. उनका परिवार व्यापारी वर्ग से आता है. चंद्रभान पासवान ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत रुदौली से जिला पंचायत सदस्य के रूप में की थी.
बीजेपी ने चंद्रभान पासवान को उम्मीदवार के रूप में इसलिए चुना है क्योंकि उनकी जातीय पहचान पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकती है. मिल्कीपुर क्षेत्र में पासी समुदाय के लगभग 70,000 वोटर हैं, जबकि अन्य अनुसूचित जातियों में 1.2 लाख वोटर हैं. पासी वोटर्स भाजपा के पक्ष में जा सकते हैं, खासकर जब बहुजन समाज पार्टी (BSP) का प्रभाव क्षेत्र में घट रहा है. इससे भाजपा को एक मजबूत दलित आधार मिल सकता है, जो आगामी चुनावों में अहम साबित हो सकता है.
मिल्कीपुर सीट पर दलित मतादाता जिसकी ओर जाएंगे वह विजयी बनेगा. यानी जीत की चाभी दलित समाज के हाथ में है. यह वजह है कि मिल्कीपुर में पिछले कई सालों से सपा अवधेश प्रसाद पर दांव लगाकर बाजी मार रही है. इस बार बीजेपी ने सपा की काट निकाली है. उसने न अयोध्या देखी और न ही कासी पासी की काट निकाली पासी. यानी बीजेपी यह समझ चुकी है कि अगर अयोध्या की मिल्कीपुर सीट पर चुनाव जीतना है तो दलित कार्ड खेलना ही होगा. मिल्कीपुर सियासी तौर पर सपा का गढ़ माना जाता है. अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उप चुनाव में किसे जीत मिलती है.
मिल्कीपुर विधानसभा में कुल 3.5 लाख मतदाता है. इनमें से 55 हजार पासी, 60 हजार ब्राम्हण, 1.2 लाख अन्य दलित (कोरी आदि), 55 हजार यादव, , 30 हजार मुस्लिम, 25 हजार क्षत्रिय, 50 हजार अन्य पिछड़ी जाति है. यानि दलित जाति के वोटर इस चुनाव में अहम भूमिका निभाने वाले हैं.
यह उपचुनाव भाजपा के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी अपनी साख बचाने के लिए हर कदम सावधानी से उठा रही है. भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं के जरिए स्थानीय समुदायों तक पहुंचने की कोशिश की है और वोटर लिस्ट में विभिन्न जातियों के आधार पर अपना चुनावी रणनीति तैयार की है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा इस उपचुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर देख रही है.