Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागारज में महाकुंभ चल रहा है. 12 जनवरी से शुरू हुआ यह महाकुंभ 26 फरवरी तक चलेगा. सनातन संस्कृति का यह महापर्व पूरे विश्व को जोड़ने का काम करता है. अगर हम कुंभ के इतिहास पर नजर डालें, तो यह आयोजन प्राचीन है और इसे लेकर कभी भी सत्ता या शासक का प्रभाव नहीं पड़ा. यह परंपरा इतनी पुरानी है कि इसके आयोजन और खर्च का हिसाब रखना एक अलग और बड़ा काम है.
जब अंग्रेजों ने महाकुंभ जैसा आयोजन देखा, तो वे हैरान रह गए और इसके पहले कई वर्षों तक उन्होंने अपने कई अधिकारियों को इस आयोजन की रिपोर्ट तैयार करने के लिए नियुक्त किया. इस समझ के बाद, अंग्रेजों ने इसे एक बड़े व्यापारिक मॉडल के रूप में देखा. उन्होंने कुंभ के आयोजन को समझने के बाद, उस पर टैक्स लगाना शुरू किया. ब्रिटिश शासन के दौरान, केवल कर ही नहीं लगाए गए, बल्कि उन्होंने कुंभ के आयोजन के लिए पैसे भी लगाए और उससे सरकार के खजाने में राजस्व भी अर्जित किया.
कुंभ मेला न केवल सांस्कृतिक और आध्यात्मिक लाभ लाता है, बल्कि यह सरकार के राजस्व पर भी सकारात्मक प्रभाव डालता है. इतिहास में यह दर्ज है कि जैसे-जैसे सरकार का कुंभ मेलों में हस्तक्षेप बढ़ा, वैसे-वैसे राजस्व की आय भी बढ़ी. लेखक और पत्रकार धनंजय चोपड़ा ने अपनी किताब "कुंभ इन इंडिया" में लिखा है कि, 'कुंभ मेले से राजस्व संग्रह की परंपरा मुग़ल भारत से शुरू हुई थी. बाद में अंग्रेजों ने इसे जारी रखा और इसका विस्तार किया. ब्रिटिश शासन में, उन लोगों से कर लिया जाता था जो धार्मिक क्रियाएँ करते थे और वेददान की परंपरा को अपनाते थे.'
ब्रिटिश शासन के दौरान 1862 में आयोजित कुंभ मेला का राजस्व और खर्च का विवरण आज भी प्रयागराज के क्षेत्रीय अभिलेखागार में मौजूद है. उस समय के नॉर्थ-वेस्टर्न प्रांत के सचिव ए.आर. रीड की रिपोर्ट के अनुसार, इस कुंभ मेले में 20,228 रुपये खर्च हुए थे, जबकि ब्रिटिश सरकार को 49,840 रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ था. इस प्रकार सरकार को 29,612 रुपये का शुद्ध लाभ हुआ था.
नाई (Barbers) : 1,332 रुपये
फूल विक्रेता : 1,600 रुपये
दूध विक्रेता : 1,064 रुपये
नाविक : 3,311 रुपये
कार चालक : 1,877 रुपये
टैक्सी ड्राइवर : 2,995 रुपये
पुरानी कलाकृतियों की बिक्री : 1,125 रुपये 14 पैसे
1906 के कुंभ का राजस्व विवरण
1906 के कुंभ से सरकार को कुल 62,342 रुपये 4 आना 6 पैसे का राजस्व प्राप्त हुआ था. इसमें से 20,114 रुपये 8 आना कुंभ टिकटों से, 2,348 रुपये नाइयों से, 1,301 रुपये वेददान से, 3,435 रुपये नाविकों से, 2,995 रुपये टैक्सी ड्राइवरों से और 3,369 रुपये पुरानी कलाकृतियों की बिक्री से प्राप्त हुए थे.
कुंभ के दौरान बाल कटवाने की परंपरा रही है. 1870 में अंग्रेजों ने 3,000 नाई केंद्र स्थापित किए थे और इनसे लगभग 42,000 रुपये प्राप्त हुए थे. इनमें से लगभग एक चौथाई राशि नाईयों से ली गई थी, क्योंकि हर नाई को 4 रुपये का कर देना पड़ता था.
फैनी पार्क्स, एक ब्रिटिश यात्रा लेखक, ने लिखा था कि, '"1765 में इलाहाबाद का शासन ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में आ गया था. 1801 में इसे औपचारिक रूप से ब्रिटिश शासन के तहत ले लिया गया. शुरुआती दौर में ब्रिटिशों के लिए कुंभ मेला एक चुनौतीपूर्ण आयोजन था, लेकिन जल्दी ही उन्होंने इसे एक आर्थिक अवसर के रूप में देखा और कुंभ स्नान के लिए एक रुपये का कर लगा दिया, जो उस समय एक बड़ी राशि मानी जाती थी. यह कर स्थानीय लोगों और श्रद्धालुओं के लिए बहुत कठिन था, फिर भी ब्रिटिश प्रशासन ने मेले को संगठित रूप में पेश करने के लिए नियम बनाए."