Mahakumbh 2025: इन 4 शहरों में लगता है महाकुंभ, जानें कैसे होता है इस धार्मिक मेला का आयोजन
महाकुंभ-2025 इस बार उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में होने जा रहा है. कुंभ मेला एक पुरानी परंपरा है, जो भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर आयोजित होता है. अब सवाल यह उठता है कि इतनी बड़ी भीड़, इतना विशाल जमावड़ा और इतने दिनों तक चलने वाला यह धार्मिक आयोजन कब और कहाँ होगा, यह कैसे तय किया जाता है.
Mahakumbh 2025: कभी आपने सोचा है कि महाकुंभ मेला क्यों और कैसे होता है? यह आयोजन न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसमें गहरी खगोलशास्त्र, ज्योतिष और सांस्कृतिक मान्यताएं भी जुड़ी हुई हैं. आइए जानते हैं महाकुंभ के बारे में, कैसे तय होती हैं उसकी तिथियां और किस आधार पर चुने जाते हैं ये पवित्र स्थल.
महाकुंभ, जिसे 'कुंभ मेला' भी कहा जाता है, भारत के चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर 12 साल के अंतराल पर आयोजित होता है. यह वह आयोजन है जहां लाखों श्रद्धालु एकत्रित होते हैं, पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और धार्मिक अनुष्ठान करते हैं .इस मेला में न केवल आस्था, बल्कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और ऐतिहासिक धरोहर का भी संगम होता है. महाकुंभ का आयोजन इतना भव्य और विशाल होता है कि इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
महाकुंभ का आयोजन कहां और क्यों होता है?
कुंभ मेला चार स्थानों पर होता है – प्रयागराज (उत्तर प्रदेश), हरिद्वार (उत्तराखंड), उज्जैन (मध्य प्रदेश) और नाशिक (महाराष्ट्र). इन स्थानों का चुनाव खगोल विज्ञान, ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं के आधार पर किया जाता है. प्रत्येक स्थान पर कुंभ मेला तब होता है जब सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति ग्रह की विशेष स्थिति बनती है.
कैसे तय होता है कुंभ का स्थान?
- प्रयागराज: जब सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति वृषभ राशि में होता है, तब कुंभ मेला प्रयागराज में होता है.
- हरिद्वार: जब सूर्य मेष राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होता है, तब कुंभ मेला हरिद्वार में होता है.
- उज्जैन: जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं, तब कुंभ मेला उज्जैन में आयोजित होता है.
- नाशिक: जब सूर्य सिंह या कर्क राशि में और बृहस्पति भी उसी राशि में होता है, तब कुंभ मेला नाशिक में होता है.
12 साल में एक बार होता है कुंभ?
कुंभ मेला हर 12 वर्षों में एक बार होता है, और यह गणना खगोलशास्त्र और हिंदू ज्योतिष शास्त्र के आधार पर की जाती है. मान्यता है कि यह आयोजन समुद्र मंथन से जुड़ा है, जब अमृत कलश से अमृत की कुछ बूंदें चार स्थानों पर गिरी थीं, जिससे ये स्थल पवित्र हो गए. हर 12 साल में एक बार इन स्थानों पर कुंभ मेला आयोजित किया जाता है. इसके अलावा, अर्धकुंभ मेला हरिद्वार और प्रयागराज में 6 साल के अंतराल पर आयोजित होता है. यह छोटे पैमाने पर आयोजित होता है, लेकिन फिर भी इसका महत्व बहुत बड़ा होता है.
महाकुंभ का महत्व
महाकुंभ मेला सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और इतिहास का एक अहम हिस्सा है. लाखों लोग इस मेले में शामिल होकर न सिर्फ आध्यात्मिक शुद्धि प्राप्त करते हैं, बल्कि यह उन्हें एकजुट होने का अवसर भी देता है. गंगा, यमुनाजी, त्रिवेणी संगम जैसे स्थानों पर स्नान करने से मान्यता है कि व्यक्ति के पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है.
महाकुंभ का आयोजन न सिर्फ आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. खगोलशास्त्र, ज्योतिष और धार्मिक मान्यताओं के मिलेजुले आधार पर इसकी तिथियां और स्थान तय होते हैं. यह आयोजन हर बार एक नई ऊर्जा और सामूहिकता का अहसास कराता है, जो भारतीय समाज के विविधता में एकता की मिसाल पेश करता है.
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