Mahakumbh 2025: प्रयागराज के महाकुंभ मेला में लाखों श्रद्धालु हर रोज पवित्र स्नान करने आ रहे हैं और ऐसे में मेला क्षेत्र में छोटे कारोबार करने वालों के लिए भी अच्छा मुनाफा कमाने का मौका होता है. सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे कुछ वीडियो में दावा किया गया कि महाकुंभ में लोग चंदन लगाकर लाखों कमा रहे हैं, जबकि कुछ लोग भीख मांगकर भी हर दिन हजारों रुपये कमा रहे हैं. लेकिन इन सबके बीच, कुछ व्यापारियों के लिए यह मेला नुकसान का कारण बन गया है.
प्रयागराज के दो युवक मंगला प्रसाद और नितेश ने सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो देखकर महाकुंभ मेला में अपनी परचून की दुकान लगाने का फैसला किया था. उन्होंने अपने माता-पिता, भाई और दोस्तों से 10-10 हजार रुपये उधार लेकर कुल 40 हजार रुपये की पूंजी निवेश की थी. उनका उद्देश्य था कि चाय, नाश्ता, स्नैक और खाने-पीने का सामान बेचकर अच्छा मुनाफा कमाएंगे. इसके लिए उन्होंने मेला क्षेत्र में राशन और सामान लेकर दुकान लगाई थी.
इनकी दुकान मेला क्षेत्र में एक अच्छे स्थान पर थी, जहां हर रोज लाखों श्रद्धालु गुजरते थे और जहां धर्मगुरुओं और शंकराचार्यों के टेंट भी थे. लेकिन फिर भी इनका कारोबार घाटे में चला गया. मंगला प्रसाद और नितेश ने बताया कि वे केवल एक रुपये में नीम की दातून बेच रहे थे और इसके लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी. पेड़ पर चढ़कर लकड़ी तोड़ी, लेकिन मेला क्षेत्र में उनके उत्पादों की कोई बिक्री नहीं हुई. अब तक उनकी कुल कमाई सिर्फ 30 हजार रुपये रही है, जबकि 10 हजार रुपये का घाटा हो चुका है.
मंगला और नितेश ने बताया कि वे पहले से ही सोचकर आए थे कि 40 हजार रुपये की पूंजी से अच्छा मुनाफा कमा लेंगे. सोशल मीडिया पर देखे गए वीडियो से उन्हें उम्मीद थी कि जैसा एक युवक ने पांच दिन में नीम की दातून बेचकर 40 हजार रुपये कमाए, वैसे ही वे भी व्यापार से कुछ कमाएंगे. लेकिन उन्होंने देखा कि महाकुंभ में जितने श्रद्धालु आते हैं, वे भंडारों से मुफ्त में पानी, चाय, खाना ले लेते हैं. ऐसे में उनका सामान बिकना मुश्किल हो गया.
इन युवकों ने यह भी बताया कि मेला क्षेत्र में कई जगहों पर मुफ्त भंडारे चल रहे हैं, जहां श्रद्धालुओं को हर प्रकार का खाना, चाय और पानी बिल्कुल मुफ्त मिल रहा है. ऐसे में लोग दुकान से क्यों खरीदेंगे? और फिर, भीड़ में भी कोई रुककर सामान खरीदने का समय नहीं निकाल पाता. दिन में जब भारी भीड़ होती है, तो दूध 100 रुपये लीटर बिकता है और इन युवकों के लिए यह बेहद मुश्किल हो गया कि वे चाय में क्या नया स्वाद डालें, ताकि लोग खरीदें.
अब, मंगला और नितेश का कारोबार ठप हो गया है. जो भी कुछ बिकने के लिए था, वह मौनी अमावस्या के आसपास था, जब श्रद्धालुओं की भारी भीड़ थी. अब, जैसे-जैसे मेला खत्म हो रहा है, लोग केवल स्नान करने आ रहे हैं और किसी को भी खाने-पीने का सामान खरीदने की फुर्सत नहीं है. मंगला और नितेश अब पूरा राशन वापस घर ले जाने की योजना बना रहे हैं, जिसमें बेसन, मैदा, तेल, और अन्य खाद्य सामग्री शामिल है.
अब महाकुंभ से साधु-संन्यासियों के शिविर हट चुके हैं और कल्पवासी भी वहां से जा चुके हैं. मेला क्षेत्र में केवल श्रद्धालु स्नान के लिए आ रहे हैं. मंगला प्रसाद और नितेश की दुकान भी अब मेला क्षेत्र से हटने वाली है. मंगला का कहना है कि वह उम्मीद के साथ व्यापार करने आए थे, लेकिन अब उसे खामोशी के साथ अपनी दुकान बंद करनी पड़ेगी. अब उनके पास बची हुई दातून की लकड़ी है, जो शायद घर ले जाकर चूल्हे में जला दी जाएगी.