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India Daily

जब नेहरू की टक्कर में लोहिया ने तांगे से किया चुनाव प्रचार, नेहरू ने अपने प्रतिद्वंदी को भेजी कार

1962 के लोकसभा चुनाव में पंडित नेहरू के खिलाफ फूलपुर सीच से राम मनोहर लोहिया चुनाव लड़ रहे थे. लोहिया ने तांगे से प्रचार कर इस चुनाव में खूब सुर्खियां बटोरी थीं.

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Edited By: Pankaj Soni
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लोकसभा चुनाव 2024 के लिए राजनीतिक दलों और चुनाव आयोग ने सारी तैयारियां पूरी कर ली हैं. अब केवल चुनावी रणभेरी बजने का इतंजार है. इसके बाद राजनीतिक दल अपना चुनाव प्रचार बढ़ा देंगे. आज के जमाने में चुनाव प्रचार अखबारों, टीवी से आगे सोशल मीडिया के माध्यम से हो रहा है, लेकिन देश में एक जमाना ऐसा भी था जब राजनीतिक दल बैलगाड़ी और कार-जीप से चुनाव प्रचार किया करते थे.

आज हम आपको एक ऐसे ही चुनाव प्रचार की रोचक कहानी सुनाने जा रहे हैं. तब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू के सामने समाजवाद के पुरोधा राम मनोहर लोहिया चुनाव लड़ रहे थे.  

1962 में आम चुनाव की रणभेरी बज चुकी थी

देश में 1962 में आम चुनाव की रणभेरी बज चुकी थी. तमाम राजनीतिक दल अपने चुनाव प्रचार में जोर जोश से लगे थे. इलाहाबाद की फूलपुर सीट से देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू चुनावी मैदान में थे तो वहीं उनके विरोध में समाजवाद के पुरोधा डॉ. राम मनोहर लोहिया चुनाव लड़ रहे थे. इस चुनाव में नेहरू की कारों का काफिला चुनाव प्रचार में निकलता था वहीं लोहिया ने तांगे से उनके चुनाव प्रचार को चुनौती दी थी. लोहिया के तांगे से चुनाव प्रचार का तरीका इतना लोकप्रिय हुआ कि देश में उसकी चर्चा होने लगी. 

पंडित नेहरू ने लोहिया के लिए भिजवाई कार

लोहिया के चुनाव प्रचार का तरीका जब सुर्खियां बटोरने लगा तो नेहरू ने अपने विरोधी नेता को चुनाव प्रचार के लिए जीप और 25 हजार की रकम भेजी. लेकिन लोहिया ने नेहरू की जीप को वापस लौटा दिया. हालांकि, पैसों को चुनाव में खर्च किया. दिग्गजों के बीच की उन दिनों की राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता आज की सियासत के लिए मिसाल है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि तब पं. नेहरू के खिलाफ चुनाव जीतना तो दूर, लड़ना भी आसान नहीं था.

नेहरू के खिलाफ मैदान में लोहिया 

ऐसे समय में नेहरू के खिलाफ मैदान में लोहिया उतरे थे. नेहरू भी चाहते थे कि उनके मुकाबले कोई बड़ा चेहरा चुनाव मैदान में आए. समाजवाद के पुरोधा डॉ. राम मनोहर लोहिया ने सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जब फूलपुर से नामांकन का भरा तो उनके राजनीतिक सहयोगियों ने सलाह दी कि दूसरी सीट से लड़ना ज्यादा ठीक रहेगा, लेकिन लोहिया टस से मस नहीं हुए.

लोहिया नेहरू के खिलाफ क्यों लड़े थे चुनाव?

लोहिया नेहरू की नीतियों का विरोध करते थे और इसीलिए उनके खिलाफ फूलपुर से चुनाव लड़ने का फैसला किया था. तब इस सीट पर देश-दुनिया की निगाहें टिक गईं थीं. विदेशी मीडिया ने भी तब इलाहाबाद में डेरा डाल दिया था. पं. नेहरू कारों के काफिले के साथ चुनाव प्रचार के लिए निकलते थे. वहीं, लोहिया तांगे पर सभाओं में पहुंचते थे. तब का नजारा देखते बनाता था. तांगे पर सवार लोहिया का मनोबल और उत्साह कभी नेहरू की कार देखकर कम नहीं हुआ. लोहिया के तांगे पर लाउडस्पीकर लगा होता था. वह उसी तांगे पर खड़े होकर जनसभा को संबोधित करते थे. 

लोहिया ने चुनाव को बना दिया था यादगार

हालांकि हमने आपको बताया था कि उस जमाने में नेहरू से चुनाव जीतना तो बहुत दूर की बात थी. उनके सामने कोई चुनाव लड़ने वाला नहीं था. अंतत: फूलपुर सीत से नेहरू चुनाव जीत गए, लेकिन लोहिया ने इस चुनाव को किस्सा बना दिया. उनके तांगे ने जो शोहरत बटोरी कि वो मिशाल बन गया. चुनाव परिणाम आया तो उसमें पं. जवाहर लाल नेहरू जरूर विजयी रहे, लेकिन डा. लोहिया 96 बूथों पर उनसे आगे रहे, जिस कारण पं. नेहरू भी उनका लोहा मान गए.