इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले में फैसला सुनाया कि किसी लड़की के स्तन पकड़ना, उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ना और उसे पुल के नीचे खींचने की कोशिश करना बलात्कार या बलात्कार के प्रयास का अपराध साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. कोर्ट ने इस मामले में "तैयारी" और "प्रयास" के बीच की रेखा खींची और निचली अदालत द्वारा लगाए गए आरोपों में बदलाव का आदेश दिया. यह फैसला 17 मार्च 2025 को पारित किया गया.
क्या है पूरा मामला
आरोपियों का पक्ष
आरोपियों ने निचली अदालत के समन को इलाहाबाद हाई कोर्ट में चुनौती दी. उनकी दलील थी कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप धारा 376 के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आते. उन्होंने कहा कि अगर शिकायत को पूरी तरह सच भी मान लिया जाए, तो यह मामला आईपीसी की धारा 354 (महिला की अस्मिता पर हमला) और 354(बी) (कपड़े उतारने के इरादे से हमला) तक ही सीमित रहता है, साथ ही पोक्सो एक्ट की कुछ धाराएं लागू हो सकती हैं. उनका तर्क था कि यह बलात्कार का प्रयास नहीं था.
कोर्ट का फैसला
हाई कोर्ट ने आरोपियों की बात से सहमति जताई. जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने अपने आदेश में कहा, "बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाने के लिए यह साबित करना जरूरी है कि मामला तैयारी के चरण से आगे बढ़ गया हो. तैयारी और वास्तविक प्रयास में अंतर मुख्य रूप से इरादे की दृढ़ता में होता है." कोर्ट ने माना कि इस मामले के तथ्य और आरोप बलात्कार के प्रयास के अपराध को स्थापित नहीं करते.
कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि आरोपी आकाश पर आरोप है कि उसने पीड़िता को पुल के नीचे खींचने की कोशिश की और उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ा. लेकिन न तो गवाहों ने कहा कि इससे पीड़िता के कपड़े उतरे, न ही यह आरोप लगाया गया कि आरोपी ने जबरन यौन हमले की कोशिश की.
नए आरोपों का निर्देश
हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को संशोधित करते हुए कहा कि आरोपियों पर आईपीसी की धारा 376 और पोक्सो एक्ट की धारा 18 के बजाय, आईपीसी की धारा 354(बी) (कपड़े उतारने के इरादे से हमला) और पोक्सो एक्ट की धारा 9 व 10 (गंभीर यौन हमला) के तहत मुकदमा चलाया जाए. कोर्ट का मानना था कि यह घटना तैयारी तक सीमित थी और बलात्कार के प्रयास की श्रेणी में नहीं आती.