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जवाहर पंडित को दिनदहाड़े गोलियों से भून डाला था, अब समय से पहले जेल से रिहा होगा पूर्व BJP विधायक उदयभान करवरिया 

Udaybhan Karwariya: 1996 में हुए जवाहर पंडित हत्याकांड केस में उदयभान करवरिया और उसके दोनों भाइयों को आजीवन कारावास की सजा हुई थी. अब उत्तर प्रदेश के कारागार विभाग ने उदयभान को समय से पहले ही रिहा करने के आदेश दे दिए हैं. राज्यपाल आनंदी बेन पटेल की अनुमति के बाद उदयभान की रिहाई का रास्ता भी साफ हो गया है. बाकी के दोषी अभी जेल में ही रहेंगे.

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Edited By: India Daily Live
Udaybhan Karwariya
Courtesy: Social Media

लगभग 28 साल पहले उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक हत्या हुई थी. समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक जवाहर यादव उर्फ जवाहर पंडित को दिनदहाड़े गोलियों से भून डाला गया था. इस हत्या में एके-47 का इस्तेमाल किया गया था. इसी मामले में साल 2019 में करवरिया बंधुओं कपिल मुनि करवरिया, उदयभान करवरिया और सूरजभान करवरिया के अलावा रामचंद्र त्रिपाठी उर्फ कल्लू को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. अब उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने उदयभान करवरिया को सजा पूरी करने से पहले ही रिहा करने को मंजूरी दे दी है. इस तरह से सिर्फ चार साल में ही उदयभान करवरिया के जेल से बाहर आने का रास्ता साफ हो गया है.

बता दें कि साल 1996 में जवाहर पंडित पर दिनदहाड़े हमला किया गया था. इस हमले में जवाहर पंडित और उनके ड्राइवर गुलाब को AK-47 से भून डाला गया था. अब जेल में अच्छे आचरण का हवाला देते हुए सरकार ने उसे रिहा करने का फैसला किया है. राज्यपाल की मंजूरी मिल जाने के बाद कारागार विभाग ने पूर्व विधायक उदयभान करवरिया की रिहाई के आदेश भी जारी कर दिए हैं.

कैसे मिली रिहाई?

इस आदेश में कहा गया है, '30 जुलाई 2023 तक उदयभान करवरिया ने 8 साल 3 महीने और 22 दिन की अपरिहार सजा और 8 साल 9 महीने 11 दिन की सपरिहार सजा पूरी कर ली है. प्रयागराज के DM और SSP की संस्तुति, जेल में अच्छे आचरण और दया याचिका की संस्तुति के चलते समय पूर्व रिहाई का आदेश दिया जा रहा है.' बता दें कि रहाई के लिए जमानत राशि और निजी मुचलका जमा करना होगा. बता दें कि करवरिया बंधु लंबे समय से ठेकेदारी और राजनीति में सक्रिय रहे थे और इसी को लेकर विवाद भी हुआ था.

क्यों हुई थी हत्या?

लंबे समय से प्रयागराज बालू के ठेकों के लिए विवादों में रहा है. इन्हीं ठेकों में वर्चस्व के लिए करवरिया बंधुओं और जवाहर पंडित के बीच विवाद शुरू हुआ था. जहां जवाहर पंडित का घर झूंसी में था तो करवरिया परिवार अतरसुइया में रहता था. साल 1980 में जौनपुर से आकर इलाहाबाद में बसने वाले जवाहर यादव 1989 तक मुलायम सिंह यादव के करीबी हो गए और राजनीति में आ गए. साल 1993 में मुलायक सिंह की सरकार में विधायक भी बने और शहर में अलग रुतबा कायम किया.

कहा जाता है कि सत्ता के दम पर धीरे-धीरे जवाहर पंडित ने बालू के ठेकों पर कब्जा कर लिया और करवरिया परिवार हाशिए पर जाने लगा था. कई बार सुलह की कोशिश हुई लेकिन बात नहीं बनी. साल 1996 में गेस्ट हाउस कांड के बाद सपा की सरकार गिर गई. इसी के बाद जवाहर पंडित को निपटाने का प्लान बना. इसका आभास जवाहर को भी था इसीलिए दो-दो बार सुरक्षा की गुहार लगाई. हालांकि, सरकार उनकी सुरक्षा के लिए कुछ करती इससे पहले ही 13 अगस्त 1996 को दिनदहाड़े गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई.

करवरिया परिवार की कहानी

वहीं, करवरिया परिवार लंबे समय से अपनी दबंगई के लिए बदनाम रहा है. सबसे पहले उदयभान करविरया को ही राजनीति में जीत मिली. साल 2000 में कपिल मुनि करवरिया ने कौशांबी के जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता. 2002 में उदयभान ने विधायकी का चुनाव जीता. 2002 में फिर से जीत हासिल की. जवाहर पंडित की हत्या के मामले में कपिल मुनि, उदयभान, सूरजभान और श्याम नारायण करवरिया और रामचंद्र त्रिपाठी के खिलाफ जवाहर के भाई सुलाकी यादव ने केस दर्ज करवाया था. इस मामले में करवरिया बंधुओं ने दावा किया कि हत्या के दिन वे इलाहाबाद में ही नहीं थे. कलराज मिश्र ने भी गवाही दी थी कि तीनों लोग उनके ही साथ थे.