Akhilesh Yadav: अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2024 के आमचुनाव में शानदार प्रदर्शन किया था. लेकिन इन्हीं सीटों पर हुए उपचुनाव में सपा को कड़ी हार का सामना भी करना पड़ा. इस खबर में हम देखेंगे कि अखिलेश यादव के लिए लोकसभा चुनाव और उपचुनाव के आंकड़े क्या बताते हैं.
लोकसभा चुनाव 2024 में समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश की 80 सीटों में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की. यह संख्या पहले के चुनावों के मुकाबले एक महत्वपूर्ण सुधार थी, जिससे पार्टी का आत्मविश्वास बढ़ा. प्रमुख सीटों पर सपा ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ कड़ी टक्कर दी.
आलमबाग (लखनऊ) से सपा प्रत्याशी रामगोविंद चौधरी ने भाजपा के उम्मीदवार को हराया, यह सीट सपा के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही थी. कन्नौज से सपा ने अपनी पारंपरिक सीट कन्नौज को बरकरार रखा, जहां डिंपल यादव ने शानदार जीत दर्ज की. इसके अलावा सपा के नेतृत्त्व में मैनपुरी सीट पर भी सपा ने भाजपा को हराया, यह अखिलेश यादव के परिवार का पारंपरिक गढ़ माना जाता है. इस चुनाव में सपा के प्रदर्शन ने यह सिद्ध कर दिया कि पार्टी में अब भी जड़ें मजबूत हैं और वह भाजपा के खिलाफ बड़ा चुनावी मोर्चा खड़ा कर सकती है.
उपचुनाव में सपा को झटका
हालांकि, उपचुनाव में समाजवादी पार्टी को बड़ा झटका लगा. अप्रैल 2024 में उत्तर प्रदेश में जिन सीटों पर उपचुनाव हुआ, उनमें सपा को हार का सामना करना पड़ा. प्रमुख उपचुनाव परिणामों में सपा के उम्मीदवारों को भाजपा और अन्य दलों के खिलाफ शिकस्त मिली, जिससे पार्टी को आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए एक रणनीतिक पुनर्विचार की आवश्यकता महसूस हुई.
रामपुर सीट पर सपा उम्मीदवार को भाजपा के उम्मीदवार से हार मिली. यह हार सपा के लिए एक बड़ा धक्का था क्योंकि रामपुर की सीट हमेशा सपा के लिए एक मजबूत गढ़ मानी जाती थी. इसी तरह आगरा में भी सपा को उपचुनाव में हार का सामना करना पड़ा, जहां भाजपा ने अपना कब्जा जमाए रखा.
विधानसभा उपचुनाव में भी सपा फिसड्डी
लोकसभा चुनाव के अलावा हाल ही में प्रदेश की 9 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भी सपा को करारी हार का सामना करना पड़ा है. 9 सीटों पर हुए चुनाव में बीजेपी ने 7 सीटों पर जीत दर्ज की है. लोकसभा और विधानसभा उपचुनावों में पार्टी को मिली हार ने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि चुनावी रणनीतियों में सुधार की आवश्यकता है. सपा के सामने अब यह चुनौती है कि वह लोकसभा चुनाव में मिली सफलता को राज्य के आगामी विधानसभा चुनावों तक बनाए रखे और उपचुनावों से मिली हार से सीख लेकर अपने कार्यकर्ताओं को दोबारा उत्साहित करे.
अखिलेश यादव को इन दोहरे परिणामों से यह संकेत भी मिला है कि पार्टी को अपनी जमीनी राजनीति पर और अधिक जोर देना होगा. क्योंकि उपचुनाव में हार ने यह स्पष्ट कर दिया कि क्षेत्रीय मुद्दों को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है.