संभल शाही जामा मस्जिद और हरिहर मंदिर को लेकर मुस्लिम और हिंदू पक्ष के अलग-अलग दावे सामने आ रहे हैं. दोनों पक्ष एक-दूसरे के अधिकारों का समर्थन कर रहे हैं और यह मामला एक बड़ा विवाद बन चुका है. मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह स्थल उनकी मस्जिद है, जबकि हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पहले मंदिर था और यह उनके धार्मिक अधिकारों से जुड़ा हुआ है. इन दावों के बीच मामला अदालत में चल रहा है, और अब तक इस विवाद का कोई हल नहीं निकला है.
संभल कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई की अगली तारीख 8 जनवरी तय की है. इससे पहले, इस विवाद से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण फैसले भी हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि हाईकोर्ट के आदेश के बिना इस विवाद से संबंधित किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की जाए. इसका मतलब है कि कोई भी पक्ष अब बिना कोर्ट के आदेश के इस मसले में कोई कदम नहीं उठा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि सभी संबंधित पक्षों को तटस्थ रहना होगा और यह सुनिश्चित करना होगा कि इस मामले में कोई भी हिंसा या अप्रिय घटना न हो.
इस बीच खबर आ रही है कि एएसआई ने कहा कि विवादित जगह 1920 से उनके संरक्षण में है. एएसआई ने कई बार वहां सर्वे करने की कोशिश की लेकिन मस्जिद कमेटी ने इसमें रुकावट डाली. इसके अलावा, मस्जिद के ढांचे में भी बदलाव किया गया. एएसआई ने यह भी बताया कि 2018 में मस्जिद कमेटी ने वहां अवैध तरीके से स्टील की रेलिंग लगाकर ढांचे में बदलाव करने की कोशिश की.
संभल की जामा मस्जिद को लेकर हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच काफी विवाद चल रहा है. हिंदू पक्ष का कहना है कि यहां पहले हरिहर मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी. उनका दावा है कि यह स्थल पहले हिंदू धार्मिक स्थल था, जिसे बाद में मस्जिद में बदल दिया गया. वहीं, मुस्लिम पक्ष इस दावे को पूरी तरह से खारिज कर रहा है. उनका कहना है कि जामा मस्जिद को बाबर ने बनवाया था और तब से मुसलमान यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं. मुस्लिम पक्ष का यह भी कहना है कि इस मसले में वे सुप्रीम कोर्ट के 1991 के आदेश को आधार बनाते हैं, जिसमें अदालत ने कहा था कि 15 अगस्त 1947 के बाद से जो भी धार्मिक स्थल जैसी स्थिति में हैं, वे उसी रूप में बने रहेंगे. इसका मतलब है कि कोई भी धार्मिक स्थल अपनी मौजूदा स्थिति को बदलने या उसमें किसी प्रकार का बदलाव करने के लिए संघर्ष नहीं कर सकता.