उत्तर प्रदेश में एक दशक की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की तस्वीर में जमीन और आसमान का अंतर आ चुका है. 4 जून 2024 को जब लोकसभा चुनाव के नतीजे आए तो वे बीजेपी के लिए हैरान करने वाले रहे. साल 2014 से लेकर 2019 तक, जिस पार्टी को यूपी ने जीभर सीटें दीं, वहीं बीजेपी का प्रदर्शन बेहद खराब रहा. साल 2014 में बीजेपी के पास 71 सीटें थीं, साल 2019 में बीजेपी के पास 62 सीटें थीं लेकिन साल 2024 में बीजेपी महज 33 सीटों पर सिमट गई. समाजवादी पार्टी ने 37 सीटें हासिल कर लीं. ये आंकड़े, यूपी में सपा के दबदबे को दिखा गए और यूपी बीजेपी में जारी कलह खुलकर सामने आ गई.
रविवार को यूपी में हार के कारणों पर जब मंथन हुआ तो नेताओं ने जमकर भड़ास निकाली. योगी आदित्यनाथ को इशारों-इशारों में इतनी नसीहतें मिलीं कि वे भी हैरत में पड़ गए. यूपी की राजनीति पर पकड़ रखने वाले, कांग्रेस प्रदेश कांग्रेस समिति के पूर्व सदस्य रहे डॉ. प्रमोद ने बताया कि यूपी में बीजेपी की हार के बाद कलह स्वभाविक है. केशव प्रसाद मौर्य और योगी आदित्यनाथ की अदावत छिपी नहीं है. केंद्रीय नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ का योगी की तरफ झुकाव न होता तो केशव प्रसाद मौर्या, उनकी राह मुश्किल कर देते. डॉ. प्रमोद ने केशव प्रसाद मौर्य के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें वे साफ कहते नजर आ रहे हैं कि संगठन से बड़ा कोई नहीं होता. सरकार भी नहीं. केशव प्रसाद मौर्य ने इशारे-इशारे में यह साबित कर दिया कि संगठन से बाहर जाने पर योगी आदित्यनाथ की सरकार भी नहीं बचेगी, उन्हें अपना रुख बदलना होगा.
सिराथू विधानसभा सीट से जबसे पल्लवी पटेल ने केशव प्रसाद मौर्य को हराया, उनका मनोबल थोड़ा टूटा. उससे पहले उन्होंने योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी थीं. जो योगी आदित्यनाथ, कभी अपने डिप्टी सीएम के यहां नहीं जाते थे, उन्हें ऐसी मुश्किलें बढ़ाई कि दौड़कर जाना पड़ा. परिवार के साथ फोटो खिंचवाना पड़ा. संदेश ये देने की कोशिश हुई कि सब ठीक है.
डॉ. प्रमोद बताते हैं कि यूपी में केशव प्रसाद मौर्य ओबीसी तबके से आते हैं. मौर्य वोटरों की यूपी में निर्णायक भूमिका है. उन्हें अध्यक्ष बनाने की एक वजह ये भी थी. उन्हें उम्मीद थी कि वे साल 2017 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा. अचानक से योगी आदित्यनाथ का नाम आया और उनका पत्ता कट गया. उन्हें डिप्टी बनना पड़ा. योगी आदित्यनाथ ने सत्ता संभालने के बाद उन्हें वह अहमियत कभी दी नहीं, जो मिलनी चाहिए थी. यही वजह है कि केशव प्रसाद मौर्य को मौका मिलता है, वे आलोचना पर उतर आते हैं. ये अदावत ही है कि केशव प्रसाद ने बता दिया है कि संगठन और सरकार में बड़ा कौन है.
केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, 'संगठन सरकार से बड़ा था, बड़ा है और हमेशा बड़ा रहेगा. सरकार से बड़ा संगठन है. 7 साल से मैं उपमुख्यमंत्री हूं मगर मैं खुद को पहले भारतीय जनता पार्टी का नेता मानता हूं और उपमुख्यमंत्री बाद में. मैं सभी वरिष्ठ नेताओं के सामने यह कहना चाहता हूं कि संगठन सरकार से बड़ा होता है.'
जो भी होता है घटनाक्रम,रचता स्वयं विधाता है।
— BJP Uttar Pradesh (@BJP4UP) July 15, 2024
आज लगे जो दंड वही, कल पुरस्कार बन जाता हैं॥
निश्चित होगा प्रबल समर्थन,अपने सत्य विचार का।
कर्मवीर को फर्क न पड़ता,कभी जीत और हार का॥
कार्यकर्ता ही मेरा गौरव व मेरा अभिमान है: उप मुख्यमंत्री श्री @kpmaurya1 #BJPUPKaryasamiti2024 pic.twitter.com/N1wXyDTUg6
केशव प्रसाद के इस बयान को योगी आदित्यनाथ से जोड़कर देखा जा रहा है. उनके खिलाफ, कार्यकर्ताओं में नाराजगी है कि वे केवल अपने मन की करते हैं, हमारी नहीं सुनी जाती है. बीजेपी के कार्यकर्ता गोरख विश्वकर्मा बताते हैं कि स्थानीय स्तर पर हमें कोई नहीं सुनता. जिला स्तर के नेता हमारी बात नहीं सुनते हैं. विधायक सांसद तक बात पहुंचाना तो असंभव ही है. अगर हमें कोई फायदा नहीं हो रहा है तो हमें पार्टी से जुड़ने का फायदा क्या है. स्थानीय स्तर पर लोग हमसे सवाल करते हैं कि आपकी पार्टी को वोट देकर हमें क्या मिला. हमारे सुझाव बड़े पदाधिकारी सुनते ही नहीं हैं. केशव प्रसाद मौर्य का इशारा भी इसी ओर है कि सरकार में अधिकारियों की ज्यादा चलती है, कार्यकर्ताओं की उपेक्षा हो रही है. अगर उन्हें नहीं सुना गया तो सरकार पर असर पड़ना तय ही है.
केशव प्रसाद मौर्य ने विधायक, मंत्री और जनप्रतिनिधियों को सीख भी दी कि कार्यकर्ताओं को सम्मान दें, उनके मान सम्मान का ध्यान रखें. उन्होंने कहा, 'हम कार्यकर्ताओं ने 2014 में मोदी की सरकार बनाने में योगदान दिया. 2017 में प्रदेश में भाजपा की प्रचंड बहुमत की सरकार, 2019 में फिर मोदी जी की सरकार और 2022 में योगी जी के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनाने में अपना अमूल्य योगदान दिया। हालांकि वर्ष 2024 में हमारे प्रयासों के बावजूद परिणाम हमारी अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहे.'
डॉ. राम मनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय के अंबेडकर सभागार में हुई बीजेपी प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में सुझावों की एक लिस्ट है, जिन पर ध्यान देना अब योगी के लिए मजबूरी बन गया है. एक तरफ जहां केशव प्रसाद, कार्यकर्ताओं को सर्वश्रेष्ठ बता रहे हैं, योगी ने उनसे कहा है कि निराश होने की जरूरत नहीं है. बैकफुट पर कार्यकर्ता न आएं. सभी ने अपनी जिम्मेदारी निभाई है, आत्मविश्वास का खामियाजा भुगतना पड़ता है.
यही Momentum 2027 में भी बनेगा... pic.twitter.com/2nGVFQAS6K
— Yogi Adityanath (@myogiadityanath) July 14, 2024
योगी आदित्यनाथ ने सरकार से नाराज लोगों को इशारे ही इशारे में बता दिया कि सरकार की अहमियत क्या है. उन्होंने कहा, 'याद रखना भारतीय जनता पार्टी है तो जिले में हमारा महापौर भी है, जिला पंचायत अध्यक्ष भी है, ब्लॉक प्रमुख भी है, चेयरमैन और पार्षद भी है तो अगर कोई खरोच आती है तो उसका असर वहां भी पड़ने वाला है.'
बीजेपी कार्यकर्ता गजेंद्र शुक्ला बताते हैं, 'खरोच' तो आई है. अगर ऐसा नहीं होता तो यूपी में हम आधे नहीं हो जाते. कार्यकर्ताओं में आक्रोश है. संगठन अपना काम कर रहा था, चूक सरकार से हुई है. सरकार को मंथन करने की जरूरत है. अगर नहीं मंथन होता है तो नतीजे 2027 के विधानसभा चुनावों पर इसका असर पड़ेगा. स्थानीय स्तर पर लोग जाति पहले देखते हैं, धर्म नहीं. राम मंदिर का मुद्दा अब चुनावी मुद्दा नहीं रह गया है. इंडिया ब्लॉक के पास जाति और धार्मिक तुष्टीकरण का बल है. बीजेपी के पास केवल विकास और हिंदुत्व है.
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व कार्यकर्ता रहे मधुसूदन कुमार बताते हैं कि सरकार पर सौ सवाल हैं. महंगाई-बेरोजगारी मुद्दा है. स्थानीय स्तर पर अधिकारियों का भ्रष्टाचार मुद्दा है. लेखपाल जैसे तहसील स्तर के कर्मचारी काम करने के बदले में 1000 से लेकर 2000 रुपये तक के घूस मांगते हैं. दाखिल खारिज कराने के नाम पर लोगों से मनमानी रकम मांगी जाती है. तहसीलदार, पटवारी सबका कोटा फिक्स है. यह सब ठीकरा, सरकार पर ही फूटेगा. स्थानीय लोग इससे ही नाराज हैं, जिनके मुद्दों को सरकार समझ ही नहीं पा रही है. केशव मौर्य का कहना गलत नहीं है. अगर संगठन पर ध्यान नहीं देंगे तो पार्टी के समीकरण जमीनी स्तर पर बिगड़ेंगे ही. बीजेपी नेताओं का पूरा इशारा योगी आदित्यनाथ की ओर ही है.
यूपी बीजेपी अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी, इस उहा-पोह में हैं कि किसका साथ दें. बैठक में मंथन की जगह, उनका ध्यान सिर्फ विपक्ष पर रहा. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के पर उन्होंने हमला बोला. कांग्रेस को भस्मासुर बताया लेकिन उन्होंने हार के कारणों पर कुछ स्पष्टता से नहीं कहा. बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा भी हार के कारणों पर बोलने से बचते नजर आए. वे योगी की आलोचना नहीं कर पाए, न ही हार के कारणों पर कुछ प्रमुखता से बोला. ऐसा क्यों हुआ, आइए समझ लेते हैं. जेपी नड्डा, अपने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाते ही नजर आए.
भारतीय जनता पार्टी का जनाधार अब घट रहा है. यूपी कार्यसमिति की बैठक में ज्यादातर नेताओं ने आगाह किया है कि सतर्क होने की जरूरत है. 7 राज्यों की 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी को करारा झटका लगा है. उपचुनाव में 10 सीटों पर इंडिया ब्लॉक, दो पर बीजेपी जीती है. एक सीट निर्दलीय के खाते में गई है. बीजेपी के हाथ से ज्यादातर सीटें फिसल गईं. योगी सरकार, हर मुद्दे पर घिरती जा रही है. कांग्रेस नेता प्रमोद उपाध्याय बताते हैं कि यूपी में 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने वाले हैं. अभी के आंकड़े इशारा कर रहे हैं बढ़त इंडिया ब्लॉक के पास है, बीजेपी की नहीं. बीजेपी के लिए उपचुनाव पहले भी बहुत अच्छे नहीं रहे हैं. बीजेपी के भीतर, हार की वजह से अंदरुनी कलह सामने आ रही है, जिसे अगर सही समय पर नहीं दबाया गया तो ऐसा हो सकता हो, यूपी का भी वही हाल हो, जैसा हमारा (कांग्रेस का) साल 2022 के पंजाब विधानसभा चुनावों में हुआ. हम नंबर वन पार्टी थे, आम आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत से सरकार बना ली. यह बगावत हो, नसीहत हो या सुझाव, अगर योगी सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो सत्ता से विदाई, तय हो सकती है.