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Former DSP Shailendra Singh: मुख्तार की वजह से छोड़नी पड़ी थी नौकरी, आज किसानों के लिए बने मसीहा...कहानी पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह की

पिछले साल एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में शैलेंद्र ने कहा था, 'मैं ऐसी सरकार के साथ काम नहीं कर सकता था जो माफिया के हाथों की कठपुतली बनकर काम करती हो.'

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Edited By: India Daily Live
Former DSP Shailendra Singh

About Former DSP Shailendra Singh: 'अगर मैंने मुख्तार अंसारी के केस से हाथ खींच लिए होते तो आज मे नौकरी कर रहा होता और आईजी के पद पर होता...', ये कहना है पूर्व डीआईजी शैलेंद्र सिंह का, जिन्हें माफिया डॉन मुख्तार अंसारी की धमकियों और राजनीतिक दबाव के चलते साल 2004 में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था. शैलेंद्र सिंह 1991 बैच के पीसीएस अधिकारी थे. उनका नाम उस समय के सबसे ईमानदार और निडर अधिकारियों की सूची में गिना जाता था लेकिन भ्रष्ट सरकार के आगे उनकी ईमानदारी बैरंग साबित हुई और उन्हें 2004 में अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.

दरअसल हुआ ये था कि 2004 में शैलेंद्र सिंह ने एक मामले में मुख्तार अंसारी के खिलाफ पोटा के तहत केस दर्ज करने की सिफारिश सरकार को भेज दी थी, उस समय वे STF में डीएसपी के पद पर तैनात थे. हालांकि तत्कालीन सरकार ने डीएसपी से ज्यादा डॉन को तबज्जो दी और मुख्तार के ऊपर से मुकदमा हटाने के लिए शैलेंद्र सिंह पर दबाव बनाया. शैलेंद्र भी अपनी ईमानदारी पर कायम रहे और उन्होंने केस वापस लेने से इनकार कर दिया और अपने पद से इस्तीफा दे दिया.

पिछले साल एक मीडिया चैनल को दिए इंटरव्यू में शैलेंद्र ने कहा था, 'मैं ऐसी सरकार के साथ काम नहीं कर सकता था जो माफिया के हाथों की कठपुतली बनकर काम करती हो.' बता दें कि उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार हुआ करती थी. वह समाजवादी पार्टी की थी जिसके संरक्षण में माफिया अतीक अहमद, मुख्तार अंसारी, विकास दुबे, अनील दुजाना का साम्राज्य जमकर फला-फूला.

शैलेंद्र को सबसे पहली खुशी अपने इस्तीके के लगभग 20 साल बाद मिली जब 2022 में मुख्ताकर अंसारी को उस पर दर्ज 61 मामलों में से 4 में दोषी ठहराया गया. 29 अप्रैल को गाजियाबाद कोर्ट ने  बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय के अपहरण और हत्या का दोषी मानते हुए मुख्तार को 10 साल जेल की सजा सुनाई. सरकार के संरक्षण के चलते पूर्व डीएसपी शैलेंद्र के हाथ मुख्तार की गिरेबान तक भले ही नहीं पहुंच सके लेकिन आज उसकी जेल में मौत से शैलेंद्र का उद्देश्य यकीनन पूरा हो गया होगा.

शैलेंद्र सिंह का बचपन सैयदराजा गांव में बीता. 8वीं तक की पढ़ाई उन्होंने यहीं से की थी. उनके पिता भी डीएसपी थे. 8वीं के बाद शैलेंद्र के पिता देवरिया चले गए थे और हाईस्कूल तक की पढ़ाई शैलेंद्र की यहीं से हुई. इसके बाद बस्ती जिले से उन्होंने इंटरमीडिएट किया. इलाहाबाद से अपनी स्नातक करने वाले शैलेंद्र ने 1991 में पीसीएस की परीक्षा पास की.

अपने पद से इस्तीफा देने के बाद  शैलेंद्र को राजनीति की ताकत का एहसास हो गया था इसलिए उन्हें राजनीति में हाथ आजमाया और 2004 में वाराणसी से निर्दलीय चुनाव लड़ा. इसके बाद वह 2006 में कांग्रेस में शामिल हुए. 2009 में वह कांग्रेस के टिकट पर चंदौली से लोकसभा का चुनाव लड़े लेकिन जीत नहीं सके.

एक कठोर सिपाही से लेकर जैविक किसान तक

शैलेंद्र इस समय जैविक खेती में हाथ आजमा रहे हैं. वह लखनऊ में रहकर जैविक खेती करते हैं जबकि उनका पूरा परिवार वाराणसी में रहता है.उन्होंने ट्रेडमिल नाम का एक यंत्र बनाया है जो किसानों को रोजगार के साधन मुहैया करा रहा है.

इस ट्रेडिमिल पर गाय और बैलों के 150rpm की रफ्तार से चलने पर जो ऊर्जा उत्पन्न होती है वह बिजली में बजली में बदल जाती है. उन्होंने इसे नंदी रथ का नाम दिया है. इसके अलावा वे अपने खाली समय में आवारा पशुओं की देखभाल का कार्य करते हैं. शैलेंद्र ऐसे पशुओं के लिए गौशाला भी चलाते हैं.

शैलेंद्र कहते हैं, 'मैंने यह सब देखा है. इसलिए मैंने किसानों की मदद करने का फैसला किया. अगर आवारा पशुओं की मदद से इसतनी आसानी से बिजली बनाई जा सकती है तो फिर किसानों को परेशान नहीं होना पड़ेगा. जैसे-जैसे गरीब शक्तिशाली होंगे, राजनीति भी बदेलगी.'