यूपी में 111 किमी लंबे कांवड़ मार्ग के लिए काट डाले 1 लाख पेड़, आरोपों की जांच करेगी NGT

एनजीटी मुरादनगर (गाजियाबाद जिला) से पुरकाजी (मुजफ्फरनगर जिला) तक कांवड़ मार्ग के निर्माण के लिए गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर के तीन वन प्रभागों के संरक्षित वन क्षेत्र में एक लाख से अधिक पेड़ों और झाड़ियों की कथित कटाई से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था.

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UP News: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने उत्तर प्रदेश में 111 किलोमीटर लंबे कांवड़ मार्ग की दो लेन के निर्माण के लिए पेड़ों की अवैध कटाई के आरोपों की जांच के लिए चार सदस्यीय संयुक्त समिति का गठन किया है. अधिकरण ने राज्य के मुख्य सचिव को यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि पेड़ों की अवैध कटाई न हो.

समिति में शामिल होंगे ये वैज्ञानिक और जिलाधिकारी
एनजीटी मुरादनगर (गाजियाबाद जिला) से पुरकाजी (मुजफ्फरनगर जिला) तक कांवड़ मार्ग के निर्माण के लिए गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर के तीन वन प्रभागों के संरक्षित वन क्षेत्र में एक लाख से अधिक पेड़ों और झाड़ियों की कथित कटाई से संबंधित मामले की सुनवाई कर रहा था.

संयुक्त समिति में भारतीय वन सर्वेक्षण के निदेशक, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक, उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव का एक प्रतिनिधि और मेरठ के जिलाधिकारी शामिल होंगे.

जेसीबी से पेड़ों को उखाड़े जाने के सबूत
एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव की पीठ ने 9 अगस्त को पारित आदेश में कहा कि हस्तक्षेप याचिका देने वाले तीन याचिकाकर्ताओं ने जेसीबी मशीनों से उखाड़े जा रहे पेड़ों की तस्वीरें और केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के लखनऊ क्षेत्र कार्यालय की 2010 की निरीक्षण रिपोर्ट दाखिल की थी, जिसने पहले उसी खंड पर आठ लेन का एक्सप्रेसवे बनाने के प्रदेश सरकार के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था.

पीठ में न्यायिक सदस्य न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल भी शामिल थे. पीठ ने कहा कि पिछली रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया था कि एक्सप्रेसवे के कारण ऊपरी गंगा नहर के किनारे की वनस्पति को काफी नुकसान पहुंचेगा और वन्यजीवों के पर्यावास में बाधा उत्पन्न होगी.

पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में एक्सप्रेस-वे की व्यवहार्यता पर भी सवाल उठाया गया है और कहा गया है कि एनएच-58 के माध्यम से गाजियाबाद, मेरठ और मुजफ्फरनगर को उत्तराखंड से जोड़ने वाली दो सड़कें पहले से ही मौजूद हैं और ऊपरी गंगा नहर के बाएं किनारे पर एक कांवड़ मार्ग भी है.

अधिकरण ने कहा, 'यह स्पष्ट नहीं है कि नया निर्णय लेते समय 2010 की रिपोर्ट और उसमें दर्ज निष्कर्ष पर विचार किया गया था या नहीं.'