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India Daily

कर्नाटक में भी गूंजा 'हिंदी थोपने' का विरोध, दो-भाषा नीति अपनाने की मांग तेज

कन्नड़ विकास प्राधिकरण ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से अनुरोध किया है कि राज्य में दो-भाषा नीति को लागू किया जाए, जिसमें कन्नड़ और अंग्रेजी को प्राथमिकता दी जाए, ताकि हिंदी के मुद्दे पर चल रही बहस को सुलझाया जा सके.

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Edited By: Ritu Sharma
Karnataka
Courtesy: Social Media

Karnataka News: तमिलनाडु के बाद अब कर्नाटक में भी हिंदी थोपने के खिलाफ विरोध तेज हो गया है. कन्नड़ विकास प्राधिकरण (केडीए) ने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को पत्र लिखकर राज्य में द्विभाषी नीति अपनाने की मांग की है.

आपको बता दें कि केडीए प्रमुख पुरुषोत्तम बिलिमाले ने मुख्यमंत्री को लिखे पत्र में कहा, ''भाषा के मुद्दे पर चल रही बहस को देखते हुए कर्नाटक को दो-भाषा नीति की आवश्यकता है.'' उन्होंने इस पत्र के साथ 'नम्मा नाडु नम्मा आलवीके' संगठन के सदस्य रमेश बेलमकोंडा द्वारा भेजे गए पत्र की प्रति भी संलग्न की, जिसमें देश में भाषाई असमानता और गैर-हिंदी भाषी राज्यों पर हिंदी थोपने का आरोप लगाया गया है.

कन्नड़ और अंग्रेजी को अनिवार्य भाषा बनाने की मांग

वहीं रमेश बेलमकोंडा ने द्विभाषी नीति की वकालत करते हुए कहा कि राज्य में शिक्षा, प्रशासन और दैनिक संचार के लिए कन्नड़ और अंग्रेजी को अनिवार्य बनाया जाए. उन्होंने कहा कि कन्नड़ को प्राथमिकता दी जानी चाहिए और अंग्रेजी को दूसरी भाषा के रूप में अपनाया जाना चाहिए.

कन्नड़ भाषा शिक्षण नियम-2017 का पालन आवश्यक

बताते चले कि कर्नाटक में 2017 में लागू कन्नड़ भाषा शिक्षण नियमों के तहत यह अनिवार्य किया गया था कि राज्य के सभी छात्रों को दूसरी भाषा के रूप में कन्नड़ सीखनी होगी, चाहे वे किसी भी बोर्ड से संबद्ध हों. इस नियम का पालन सुनिश्चित करने के लिए भी सरकार से सख्त कदम उठाने की मांग की जा रही है.

स्थानीय भाषाओं के संरक्षण पर जोर

हालांकि, रमेश ने क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण की बात करते हुए कहा कि तुलु जैसी उप-क्षेत्रीय भाषाओं के लिए उचित स्थान सुनिश्चित किया जाना चाहिए. इसके अलावा, उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई अपनी पसंद से कोई अन्य भाषा सीखना चाहता है, तो उसके लिए सुविधाएं उपलब्ध होनी चाहिए, लेकिन कोई भी भाषा जबरन नहीं थोपी जानी चाहिए.

भाषा सीखने का बोझ कम करने की जरूरत

वहीं, रमेश ने कहा कि शिक्षा प्रणाली को ऐसा बनाया जाना चाहिए कि छात्रों पर भाषा सीखने का अनावश्यक बोझ न पड़े. उन्होंने सरकार से अपील की कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत प्रस्तावित तीन-भाषा फॉर्मूले को कर्नाटक में लागू न किया जाए.

कर्नाटक में बढ़ता विरोध, सरकार के रुख पर निगाहें

बहरहाल, कर्नाटक में हिंदी थोपने के खिलाफ बढ़ती आवाजों के बीच अब यह देखना दिलचस्प होगा कि मुख्यमंत्री सिद्धारमैया सरकार इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है. राज्य में भाषाई पहचान और क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण को लेकर यह बहस और तेज़ हो सकती है.