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कर्नाटक: 85 साल की रिटायर्ड टीचर को मिलेगा सम्मान के साथ मरने का अधिकार

कर्नाटक में रिटायर्ड सरकारी स्कूल टीचर, 85 वर्षीय एच. बी. करिबासम्मा, अब कर्नाटक में "सम्मान के साथ मरने का अधिकार" प्राप्त करने के करीब हैं. उनके संघर्ष के बाद राज्य सरकार ने 30 जनवरी को एक सर्कुलर जारी किया है, जिसके तहत अंतिम अवस्था में रहने वाले मरीजों को सम्मान के साथ मरने का अधिकार मिलेगा.

H B Karibasamma
Courtesy: X

कर्नाटक में रिटायर्ड सरकारी स्कूल टीचर, 85 वर्षीय एच. बी. करिबासम्मा, अब कर्नाटक में "सम्मान के साथ मरने का अधिकार" प्राप्त करने के करीब हैं. उनके संघर्ष के बाद राज्य सरकार ने 30 जनवरी को एक सर्कुलर जारी किया है, जिसके तहत अंतिम अवस्था में रहने वाले मरीजों को सम्मान के साथ मरने का अधिकार मिलेगा. अब करिबासम्मा इस मौके का इंतजार कर रही हैं ताकि उनके जीवन का यह अंतिम उद्देश्य पूरा हो सके.

तीन दशकों का दर्द और संघर्ष

करिबासम्मा का जीवन कभी आसान नहीं रहा. उन्होंने अपनी कमर में स्लिप डिस्क के कारण 30 वर्षों तक कड़ा दर्द सहा और हाल ही में उन्हें कैंसर का भी निदान हुआ. इन शारीरिक कष्टों के बावजूद, उन्होंने पिछले 24 वर्षों से भारतीय समाज में "सम्मान के साथ मरने का अधिकार" के लिए संघर्ष किया. उन्होंने मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति और यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट तक को पत्र लिखे थे.

कर्नाटक सरकार का कदम

2018 में सुप्रीम कोर्ट ने निष्क्रिय ईथ्यूसनाजिया को वैध कर दिया था, लेकिन अब तक कर्नाटक में इसे लागू नहीं किया गया था. कर्नाटक सरकार ने 30 जनवरी को एक महत्वपूर्ण सर्कुलर जारी किया, जिससे इस अधिकार को मंजूरी दी गई है. राज्य स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री, दिनेश गुंडू राव ने यह स्पष्ट किया कि यह निर्णय ईथ्यूसनाजिया से अलग है और केवल उन मरीजों पर लागू होगा, जो जीवन-समर्थन पर हैं और वेंटीलेटर से अलग होने पर उनके लिए खतरा पैदा हो जाता है. 

करिबासम्मा का संकल्प

करिबासम्मा इस कानून को लागू करने की पहल में पहले स्थान पर रहना चाहती हैं. उन्होंने कहा, "बहुत से लोग इस सूची में हैं, जो इस अधिकार का लाभ उठाना चाहते हैं, लेकिन मैं चाहती हूं कि मैं कर्नाटक में इसका पहला लाभार्थी बनूं." करिबासम्मा का यह संघर्ष उन्हें व्यक्तिगत रूप से बहुत महंगा पड़ा. उन्होंने अपनी संपत्ति, वित्तीय स्थिति, और रिश्तों को खो दिया, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी सोच और उद्देश्य में बदलाव नहीं किया. उनका मानना है कि जो लोग असाध्य रोगों से पीड़ित हैं, उन्हें सम्मानजनक तरीके से मरने का हक मिलना चाहिए.