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लोगों को मिलेगा सम्मान से मरने का अधिकार, कर्नाटक में सबसे पहले SC का आदेश होगा लागू

कर्नाटक सरकार ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए, उन रोगियों को 'सम्मान के साथ मरने का अधिकार' प्रदान किया है, जिनकी चिकित्सा स्थिति में सुधार की कोई संभावना नहीं है. यह निर्णय जनवरी 2023 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप है, जो जीवन रक्षक उपचार को रोकने की अनुमति देता है.

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Edited By: Ritu Sharma
Karnataka News Right To Die With Dignity
Courtesy: Karnataka News Right To Die With Dignity

Karnataka Supreme Court Order: कर्नाटक सरकार ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए गंभीर रूप से बीमार मरीजों को 'सम्मानजनक मृत्यु' का अधिकार दिया है. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के जनवरी 2023 के आदेश के अनुपालन में लिया गया है, जिसमें कहा गया था कि जिन मरीजों के ठीक होने की कोई संभावना नहीं है या जो लगातार वानस्पतिक अवस्था में हैं, उनके लिए जीवन रक्षक उपचार को रोका या वापस लिया जा सकता है.

राज्य सरकार ने जारी किया औपचारिक आदेश

गुरुवार को कर्नाटक सरकार ने एक आधिकारिक अधिसूचना जारी कर स्पष्ट किया कि राज्यभर के सभी निजी और सरकारी अस्पतालों में यह नियम लागू होगा. आदेश के अनुसार, कोई भी न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट या इंटेंसिविस्ट, जिसे मानव अंग और ऊतक प्रत्यारोपण अधिनियम, 1994 के तहत मान्यता प्राप्त हो, वह ऐसी स्थितियों में मृत्यु प्रमाणित करने के लिए मेडिकल एक्सपर्ट बोर्ड का हिस्सा होगा.

कैसे होगी निगरानी?

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, दो स्तरों पर मामलों की समीक्षा की जाएगी:-

  • प्राथमिक बोर्ड – यह अस्पताल स्तर पर कार्य करेगा और मरीज की स्थिति की निगरानी करेगा.
  • माध्यमिक बोर्ड – इसमें जिला स्वास्थ्य अधिकारी (DHO) या उनका नामित व्यक्ति शामिल होगा, जो निर्णय की पुष्टि करेगा.

कर्नाटक बना ऐसा निर्णय लेने वाला पहला राज्य

मुंबई के पीडी हिंदुजा नेशनल हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च सेंटर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रूप गुरसाहनी के अनुसार, ''कर्नाटक गंभीर रूप से बीमार मरीजों को सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार देने वाला पहला राज्य बन गया है.'' उन्होंने यह भी बताया कि गोवा, महाराष्ट्र और केरल ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए हैं, लेकिन वे अब तक पूरी तरह प्रभावी नहीं हुए हैं.

क्या है सरकार का रुख?

कर्नाटक के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री दिनेश गुंडू राव ने इस निर्णय को डॉक्टरों और मरीजों के परिवारों के लिए लाभकारी बताया. उन्होंने स्पष्ट किया कि इसे इच्छामृत्यु (Euthanasia) से भ्रमित नहीं किया जाना चाहिए. वहीं राव ने कहा, ''यह केवल उन मरीजों पर लागू होता है जो जीवन रक्षक प्रणाली पर हैं और उपचार का कोई प्रभाव नहीं हो रहा.''

अग्रिम चिकित्सा निर्देश (AMD) भी जारी

इसके अलावा, सरकार ने अग्रिम चिकित्सा निर्देश (Advance Medical Directive - AMD) भी पेश किया है, जो एक जीवित वसीयत की तरह काम करेगा. इसके तहत मरीज पहले से ही यह तय कर सकता है कि भविष्य में उसे किस प्रकार का उपचार चाहिए.  इसको लेकर मंत्री ने बताया, ''AMD के तहत, मरीज को दो व्यक्तियों को नामित करना होगा जो उसकी ओर से स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेंगे, यदि वह खुद निर्णय लेने में सक्षम नहीं रहता. यह दस्तावेज़ डॉक्टरों को सही उपचार निर्णय लेने में मदद करेगा.''

हालांकि, कर्नाटक सरकार का यह फैसला गंभीर रूप से बीमार मरीजों और उनके परिवारों के लिए एक राहतभरी पहल है. इससे मरीजों को सम्मानपूर्वक मृत्यु का अधिकार मिलेगा और डॉक्टरों को भी स्पष्ट दिशा-निर्देश मिलेंगे. इस कदम से कर्नाटक ने पूरे देश में एक मिसाल कायम की है.