Karnataka News: बेंगलुरु के एक बाइक राइडर का वायरल वीडियो सोशल मीडिया यूज़र्स के बीच चर्चा का विषय बन गया है. इस वीडियो में बाइक राइडर ने दावा किया कि वह राइड-हेलिंग सेवाओं के जरिए हर महीने 80,000 से 85,000 रुपये तक कमा रहे हैं. कर्नाटक पोर्टफोलियो द्वारा एक्स पर साझा की गई क्लिप में ड्राइवर को यह समझाते हुए दिखाया गया है कि उसकी इतनी इनकम उबर, रैपिडो पर रोजाना 13 घंटे तक काम करने से होती है. वीडियो में ड्राइवर और एक शख्स के बीच बातचीत दिखाई गई है, जो जवाब देता है, "इतना तो हम भी नहीं कमाते."
दरअसल, सोशल मीडिया में वायरल हो रहा ये वीडियो पर अब पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा ने वीडियो शेयर कर भारत की गिग इकॉनमी की तारीफ की है. एक्स पर एक पोस्ट में, शर्मा ने लाखों नौकरियां पैदा करने में तकनीक-संचालित प्लेटफार्मों के प्रयासों की सराहना की, इसे एक क्रांति बताया जो स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देती है.
विजय शेखर शर्मा का समर्थन
पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर शर्मा ने पोस्ट में कहा, "ये सहकर्मी एक डिजिटल सेवा पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण कर रहे हैं, जिसकी दुनिया सराहना करती है - इंस्टेंट डिलीवरी, लोकल राइड और हर कोने पर पेटीएम क्यूआर." उन्होंने एक हिंदी गाने के बोल भी दिए, "हम हैं नए, तो अंदाज़ क्यों हो पुराना?"
India’s new-age technology firms have sparked a revolution in job creation at scale, generating crores of well-paying jobs that fuel our local economy. These colleagues are building a digital services ecosystem that the world admires—quick deliveries, local rides, and Paytm QR at… pic.twitter.com/epR7wefu9g
— Vijay Shekhar Sharma (@vijayshekhar) December 6, 2024
बाइक टैक्सी की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता
भारत में बाइक टैक्सी की मांग खासकर शहरी क्षेत्रों जैसे बेंगलुरु में तेजी से बढ़ी है. यह सेवा अब कई यात्रियों के लिए एक अहम साधन बन चुकी है, जो किफायती और तेज परिवहन चाहते हैं. इसके अलावा, यह सेवा ड्राइवरों को अप्रत्याशित रूप से अच्छा आय का स्रोत भी दे रही है.
वीडियो पर सोशल मीडिया पर यूजर्स ने दी प्रतिक्रियाएं
इस वीडियो के वायरल होने के बाद सोशल मीडिया पर कई प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. जहां कुछ लोग इसे डिजिटल इंडिया की ताकत का प्रतीक मानते हुए इसकी सराहना कर रहे हैं, जबकि कुछ अन्य लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि इतने लंबे काम के घंटे ड्राइवरों के स्वास्थ्य और काम-जीवन संतुलन पर किस तरह प्रभाव डाल सकते हैं.