कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष यूटी खादर ने शुक्रवार, 21 मार्च 2025 को 18 भाजपा विधायकों को अनुशासनहीनता के आरोप में तत्काल प्रभाव से छह महीने के लिए निलंबित कर दिया. यह कार्रवाई विधायकों द्वारा दिन में पहले विधानसभा की कार्यवाही में बाधा डालने और अध्यक्ष के निर्देशों की अवहेलना करते हुए असभ्य व्यवहार करने के बाद की गई.
निलंबित विधायकों ने अध्यक्ष के मंच पर चढ़कर, कागजात उछालकर और सदन के बीच में प्रदर्शन करके हंगामा मचाया. इसके बाद मार्शल्स ने उन्हें सदन से बाहर ले गए. निलंबित विधायकों में विपक्ष के मुख्य सचेतक दोड्डानागौड़ा एच पाटिल, अश्वथ नारायण सीएन, एसआर विश्वनाथ, बीए बसवराज, एमआर पाटिल, चन्नबसप्पा (चन्नी), बी सुरेश गौड़ा, उमानाथ ए कोट्यान, शरणु सलागर, शैलेंद्र बेलदाले, सीके राममूर्ति, यशपाल ए सुवर्णा, बीपी हरीश, भरत शेट्टी वाई, मुनिरत्ना, बसवराज मत्तीमूद, धीरज मुनिराजु और चंद्रु लमानी शामिल हैं.
#WATCH | Bengaluru: 18 Karnataka BJP MLAs being carried out of the Assembly after their suspension.
— ANI (@ANI) March 21, 2025
The House passed the Bill for their suspension for six months for disrupting the proceedings of Assembly. The Bill was tabled by Karnataka Law and Parliamentary Affairs Minister… pic.twitter.com/KKss0M9LVZ
निलंबन आदेश के अनुसार, ये विधायक विधानसभा हॉल, लॉबी और गैलरी में प्रवेश नहीं कर सकेंगे. उन्हें किसी भी स्थायी समिति की बैठकों में भाग लेने, विधानसभा के एजेंडे में अपने नाम से कोई विषय या मामला दर्ज करने की अनुमति नहीं होगी. निलंबन अवधि के दौरान उनके द्वारा जारी कोई भी निर्देश स्वीकार नहीं किया जाएगा और वे समिति चुनावों में मतदान भी नहीं कर सकेंगे. इसके अलावा, इस अवधि में उन्हें कोई दैनिक भत्ता भी नहीं मिलेगा.
दिनभर हंगामे में डूबी विधानसभा
कर्नाटक विधानसभा में दिनभर दो बड़े मुद्दों - हनी ट्रैप कांड और मुस्लिमों के लिए 4 प्रतिशत आरक्षण वाले एक विवादास्पद विधेयक को कथित तौर पर मंजूरी - के कारण हंगामा चलता रहा. हनी ट्रैप विवाद तब शुरू हुआ जब सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने दावा किया कि 48 राजनेता, जिनमें केंद्रीय स्तर के प्रमुख नेता भी शामिल हैं, एक जटिल हनी ट्रैप योजना का शिकार हुए हैं.
इसके जवाब में भाजपा नेताओं ने सदन के बीच में पहुंचकर सीडी लहराईं, जो ब्लैकमेल और जबरदस्ती के सबूत होने का संकेत दे रही थीं. विपक्षी नेताओं ने इन आरोपों की गहन जांच की मांग की, जिस पर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने आश्वासन दिया कि सरकार किसी भी दोषी को नहीं बचाएगी और औपचारिक शिकायत मिलने पर उच्च स्तरीय जांच शुरू की जाएगी. इस हंगामे के बीच विधानसभा ने एक वित्त विधेयक पारित किया. हालांकि, भाजपा विधायकों ने इसे गलती से 4 प्रतिशत आरक्षण वाला विधेयक समझ लिया और इसकी प्रतियां फाड़कर उछाल दीं, जिससे कार्यवाही और बाधित हुई.
विवादास्पद आरक्षण प्रस्ताव
कर्नाटक सार्वजनिक खरीद में पारदर्शिता (केटीपीपी) अधिनियम में प्रस्तावित संशोधन के तहत 2 करोड़ रुपये तक के सिविल कार्यों और 1 करोड़ रुपये तक के सामान/सेवा अनुबंधों में 4 प्रतिशत आरक्षण श्रेणी 2बी (मुस्लिम) से संबंधित व्यक्तियों के लिए आरक्षित करने की बात है. भाजपा ने इस कदम की आलोचना करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया और कानूनी चुनौती देने की कसम खाई है. इस घटनाक्रम ने कर्नाटक की राजनीति में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है, जिसके प्रभाव आने वाले दिनों में और स्पष्ट होंगे.